चलो अब मैं करूँ कुछ यूं तुम्हारी याद में खोकर
वही मंगल पुराने दिन हंसी जज्बात में खोकर
तरक्की की तरफ़ तेरा कदम तुझको फले फूले
सुमित मैं पास आ जाऊं तेरे अहसास में खोकर
परीक्षा के प्रथम दिन की हृदयतल से बधाई है
तेरी खातिर जुबां पर फिर वही अरदास आयी है
हुआ भी क्या अगर आंखें हुई मेरी सुमित गीली
दुआ दिल में जो बैठी थी छलक आंखों से आयी है
काश मैं तुम्हारे आने से पहले वहां खड़ा रहता
तुम्हारे निकलने पर भी मैं बस वहीं खड़ा मिलता
काश ऐसे ही चला करता बराबर समय का पहिया
पहले सबेरे खड़ा रहता था अब दोपहर को खड़ा रहता
तड़प तब भी थी तुम्हारे लिए
तड़प अब भी है तुम्हारी लिए
फर्क बस इतना है सुमित,
पहले तुम्हारे लिए कुछ कर गुजरने की तड़प थी
आज तुम्हारे लिए कुछ न कर पाने की तड़प है
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