Sunday, December 30, 2018

अलविदा ।

                        Sumit patel

अलविदा 2018


हर ओर नये वर्ष के आगमन की प्रतीक्षा हो रही है, बधाइयों के सिलसिले चल पड़े हैं।लोग अपने सपनों को साथ लेकर 2018 से उतरकर 2019 रूपी जहाज़ पर सवार होने को आतुर हैं। ऐसे में बहुत ज़रूरी है कि हम अपने पीछे छूट रहे साल के बारे में समीक्षा करके उसका धन्यवाद अदा करें तथा उसे सम्मानजनक विदाई दें।अन्यथा हम नये साल का स्वागत पूरी ईमानदारी से नहीं कर पाएंगे। क्योंकि जब फिर से दिसम्बर आएगा तब इस नये साल को भी पुराना करके हम नये के इंतजार में लग जाएंगे। सच है भी यही! हम यही तो करते आये हैं अब तक। इसलिए आइए भूल की पुनरावृत्ति न करें 2019 के स्वागत से पहले 2018 को विदा करें।
     जहां तक मेरा सवाल है, 2018 के पल पल को मैं शत शत नमन करता हूँ। मेरे जीवन के अभिन्न सहयोगी तुम्हें हृदय से धन्यवाद और भीगीं पलकों से विदाई अर्पित है। मुझे अब भी याद है,तुम्हारा पहला दिन ही मेरे जीवन का बहुत महत्वपूर्ण दिन बन गया था। सोमवार कि सुबह लगभग साढ़े आठ बजे होंगें जब किसीने मुझे HAPPY NEW YEAR कहकर बधाई दी थी। मेरे पास उस ख़ुशी को व्यक्त करने को शब्द ही नहीं हैं। बहुत आभार, पहले ही दिन मेरा पूरा वर्ष मंगल हो गया और मंगल ही रहा। ऐसे अनेक खुशयों के पल आये तो कुछ विपरीत परिस्थितियां भी आईं।उतार चढ़ाव तो समय के साथ चलते हैं,इसके लिए समय दोषी नहीं होता। हमें सकारात्मक होना चाहिए तथा सकारात्मक पलों को ही ज़हन में रखना चाहिए। नकारात्मक पलों को समय के साथ ही भूल जाना चाहिए। ऐ बीतते वर्ष तेरे साथ रहकर मैंने अनेक खट्टे मीठे पल जियें हैं उनके लिए तेरा शुक्रिया।।
रखेंगें हम याद,जो तुमने दी सौगात,
कोई जब बात आएगी,तुम्हारी याद आएगी।
Thanks 2018
Good bye 2018
       

Wednesday, December 26, 2018

तुझे ही अपने दिल की सरकार कहते हैं।

                         Sumit patel

तेरी राह देखूं तो लोग इंतज़ार कहते हैं,
बड़े नासमझ हैं इसे तो प्यार कहते हैं।।

बड़ा नाज़ है तुझको दोनों जहां बनाने पर,
ऐ खुदा उसके बिना हम दुनिया को बेकार कहते हैं।

गुंघरू की छन छन में पांव के छाले रोते हैं,
हद करते हैं आप भी इसे झनकार कहते हैं।

वो मुझसे थोड़ा थोड़ा ख़फ़ा सा क्या हो गया,
मेरे दुश्मन इसे मेरी सबसे बड़ी हार कहते हैं।

मेरे हमदम तेरा हर फ़ैसला कुबूल है मुझको,
तुझे ही हम अपने दिल की सरकार कहते हैं।

हो सके तो उनकी ग़लत फ़हमी ज़रा मिटा देना,
जो ख़ुश होकर तुमको मुझसे बेज़ार कहते हैं।

सुमित'उनके हिस्से में भी कुछ फूल आने चाहिए,
जो हर पल काँटों पर चलने को तैयार रहते हैं।

Sunday, December 23, 2018

मेरे यार को मनाने में...

                         Sumit patel

माना कि अब देर नहीं है ऐ नये साल तेरे आने में।

पर मुझे न छेड़ मैं व्यस्त हूं मेरे यार को मनाने में।।

उसकी मुबारक़ रज़ा बिन मज़ा क्या जश्न मनाने में।

जब वो ही मुझसे रूठा है तो बचा क्या इस जमाने में।।

Wednesday, December 19, 2018

बिछड़कर भी फ़क्र है उसपर

                        Sumit patel

गुलशन से कली को बेज़ार कर गया।
वह फिर से अपनी हदें पार कर गया।।

मैं खिलौना ही था तो मुझसे खेलता वो,
मैं टूटा भी नहीं और दरकिनार कर गया।।

जो भी कहा, मुस्कुराकर कहा था उसने,
मैं और करता भी क्या ऐतबार कर गया।।

उसके चेहरे पर मोहब्बत की लिखावट थी,
जिसे पढ़ते ही मैं उससे प्यार कर गया ।।

आशियाने से दूरी उसे क्योंकर गंवारा थी,
शज़र रोता रहा परिंदा आजाद कर गया।।

उसकी यादों को सँजोने के शिवा करूं भी क्या,
जो हर बार करता था वही इस बार कर गया।।

वक़्त से वक़्त माँगा था वक़्त बेवक़्त रोने को,
कमबख़्त वक़्त ज़ो ठहरा इनकार कर गया।।

बिछड़कर भी 'सुमित' अब फ़क्र है उस पर,
उसी की आरजू थी उसी को प्यार कर गया।।

Saturday, December 15, 2018

तेरे सपने देखता

                        Sumit patel

हल्के में मत लीजिए यूं जीवन को मित्र।
जाने बदले कब यहां,अपने अपने चित्र।।1

तेरे सपने देखता, दिल मूरख दिन रैन।
तेरी सुधि हो जहां, मिलता इसको चैन।।2

तू है तो ये जिंदगी , मुझपे है आसान।
जान न पाए जानके, जान हुए अनजान।।3

Saturday, December 8, 2018

"पता है"।

                              Sumit patel

"पता है"

मैं कहता कि मैं पागल हूं,
काश तुम ये कहती "पता है"।
मैं कहता कि मैं तुम्हे बहुत चाहता हूँ,
काश तुम ये कहती "पता है"।
मैं कहता मैं कि मैं तुम्हें सच में बहुत चाहता हूँ,
काश तुम ये कहती, हाँ बाबा! कहा न, "पता है"।
मैं कहता कि हर छूटी कॉल वापस किया है तुम्हें जानकर,
काश तुम ये कहती , "पता है"।
मैं कहता कि हर पल तुम्हें देखने के बहाने ढूंढता था,
काश तुम ये कहती , "पता है"।
मैं कहता कि अब बस तुम्हारे लिए जी रहा हूँ,
काश तुम ये कहती , "पता है"।
मैं कहता कि अब बस तुम्ही जिंदगी हो,
काश तुम ये कहती , हाँ हाँ! "पता है"।
मैं ये कहता हिचकी आती है मुझे बस तेरे नाम की,
काश तुम ये कहती , "पता है"।
मैं कहता तुम मेरे सपनों में रोज आती हो,
काश तुम मुस्कुराकर ये कहती, "पता है"।
मैं कहता तुम्हारी मुस्कराहट कयामत ढाती है,
क़ाश तुम भाव खाकर ये कहती,"पता है"।
मैं ये कहता कि तुम मेरी आशा और विश्वास हो,
क़ाश तुम ये कहती, "पता है"।
मैं कहता कि तुम्हें देने को रोज़ रोज मैं तोड़ता था,
काश तुम फिर से ये कहती, "पता है"।
मैं ये कहता कि तुम्हारी यूज़ की कुछ कलमें मेरी धरोहर हैं,
काश तुम चिढ़कर कहती, "पता है"।
मैं फिर ये कहता जिन्हें तुमने दी नहीं मैंने चुराई थी,
काश तुम अफ़सोस के साथ कहती,"पता है"।
मैं ये कहता कि मैं कल भी निर्दोष था आज भी हूँ,
काश तुम ये पूरे विश्वाश से कहती,"पता है"।
मैं ये कहता कि तड़पन भी तड़पाकर हार गयी पर मैं हारा नहीं,
काश तुम दर्द से सिहरकर कहती, "पता है"।
मैं कहता कि चाँद में बड़ी रात तक तुम्हे निहारता हूँ,
काश तुम जोर से हंसकर ये कहती, "पता है"।
मैं कहता कि तुम्हारी यादें मुझसे बात करती रहती हैं
काश तुम भावुक होकर ये कहती, "पता है"।
मैं ये कहता तुम्हारे साथ बीते लमहों में पूरी जिंदगी जी ली,
काश तुम शांत होकर ये कहती, "पता है"।
मैं कहता कि तुम हमारे सांवरे मैं तुम्हारी राधिका हूँ,
काश तुम रसखान सा चौककर ये कहती, "पता है"।
मैं कहता कि तुम्हारा इंतज़ार अब बहुत करता हूं,realy
काश तुम मेरा दिल बनकर ये कहती,"............है"

सजा दे जिन्दगानी या सज़ा दे साथिया

                        Sumit patel

मुझसे जो ख़ता हुई बता दे साथिया,
मीठी मीठे बोल फिर सुना दे साथिया।
फेरी क्यों निगाहें कुछ वजह दे साथिया,
सजा दे जिन्दगानी या सज़ा दे साथिया।।

Tumhare hawale kiya lo tumhare geet,

                         Sumit patel

इश्क़ की नाज़ुक राहों मेरे हौंसले को परवाज़ देना।
शामोसहर पुकारता जाता हूं उनको ये आवाज देना।।

जिन्दा रहने के लिए भरोसा जिन्दा रहना जरूरी है,
मैंने कब कहा तुझसे ऐ खुदा मुझे तख़्तोताज़ देना।।

तुझे फ़रिश्ता मानकर रख दिया सर तेरे क़दमो में,
तेरी मर्जी चाहे उबार देना या धड़ से उतार देना ।।

तुम्हारी मोहब्बत के परदे पर कुछ शीन हमारे भी हैं,
क़िरदार में वफ़ादारी मिले तो मोहब्बत से नवाज़ देना।।

तुम्हारे हवाले किया लो तुम्हारे गीत,जो मैंने लिखे हैं
दिल की इन्हें क़ैद और होंठों का अपने साज़ देना।।

Sunday, December 2, 2018

तुम्हारा निश्छल प्रेम

                        Sumit patel


मुझे याद है थोड़ा थोड़ा,
कि तुमने भी मेरी आँखों से नज़र मिलाई थी।
मेरे इधर उधर ढूँढने में तुम भी मुझे ढूंढती नज़र आई थी।
मैं तुम्हें देखूं उसी समय तुम भी मुझे देखो,
 ऐसा अकस्मात तो नहीं हो सकता,
एक दो बार को मानूँ हर बार तो नहीं हो सकता,
मैंने देखा कि नजरों से नजरें तुमने भी मिलाई थी,
कुछ न होकर मेरी सबकुछ बनकर नजरों के सामने
आईं थी,
मेरी हर भूल पर टोका था तुमने,
कुछ भी न कहकर बहुत कुछ कहा था तुमने,
मैंने देखा तम्हे, मेरे हाथों में नशीला पदार्थ देख
नाराजगी से नजरें फेर लेना,
और उसे फेंकते ही निश्छलता से तेरा
मुस्करा देना,
फ़िकर में मेरी कहा था तुमने,
इस तरह बीमार होकर सर्दी में घूमना अच्छी बात नहीं है,
जल्दी घर जाओ आराम करो,तुम्हारी आवाज भी
बदल गयी है,
ऐसी बहुत सी बातें तुम्हें बताऊं जो बीत गयी हैं,
कभी हाथ पकड़कर तुम्हारा वो अपना काटकर फेंका कलावा चेक करना, जो आज भी सुरक्षित है।
और तो और तुम्हारी आंख में मैंने अपनी रूह की हर
ख़ुशी पाई थी,
ऐसे वैसे ही सही पर तुमने भी नज़र मिलाने की हर
रस्म निभाई थी,
मैंने भरी महफ़िल देखा है कि मैं तुम्हें,और 
तुम मुझे ढूंढ रही थी,
तुम्हारे इशारों में ही मेरी कविता हो रही थी।
मंच पर खड़ा मैं केवल बोल रहा था,
तुम्हें कैसे समझाऊं कविता के भाव, सोच रहा था,
कविता का रस बदलने से तुम्हें नाराज़ देख
मैं फिर श्रंगार गाने लग गया था,
शायद तुम्हें अब भी याद हो वो पल
बड़े अधिकार से जब तुमने,कविता खत्म करने पर इशारों से ऐतराज जताया था,
और उस ऐतराज को तुम्हारा आदेश मानकर मैंने
एक गीत और गाया था,
असम्भव प्रेम!मैंने क्या कहा,तुम चौंक जो गये,
अब क्या शेष बचा था जो तुम कह न गये,
वैसे भी तुम्हारी आँखों में मैंने घंटों निहारा है,जहां बस
निश्छलता के शिवा कुछ और न मिला,
लोग कहते हैं जहां निश्छल भाव होगा।
वहीं दया,करुणा,प्रेम,स्नेह और लगाव होगा।
जहां दया,करुणा,प्रेम,स्नेह और लगाव होगा,
वहां नदियों सा भटकाव नहीं कुएँ सा ठहराव होगा।।
गूंगे की तरह प्रेम के मीठे फल का स्वाद
कैसे मैं बताता,
तुम्हीं कहो तुम्हारी निश्छल आँखों में डूबने से
खुद को कैसे मैं बचाता।।

Saturday, December 1, 2018

मैं भारत का किसान हूँ

                        Sumit patel


मैंने कहा तेल का दाम बढ़ रहा है,
वो बोले देश भी तो बढ़ रहा है,
मैंने कहा रसोई गैस के मामले में क्या ख्याल है,
वो बोले ये विपक्षी दलों की चाल है।
महंगाई में बाज़ार है तो कुछ असर तो होगा ही,
मैंने कहा सुना है सोना भी चढ़ गया है,
टीवी,फ़्रिज,वाशिंगमशीन का दाम भी बढ़ गया है,
फ़र्जी के सर्टिफ़िकेट,चुनाव के टिकेट,दाढ़ी के ब्लेट
खेतों की यूरिया,गेहूं के बीज,बिजली के बिल।
पुलिस की घूस,जंगलात का हफ़्ता,होटल की टिप
बाइक का रजिस्ट्रेशन,पंचर वाला सुलेशन,
दांत का मंजन,आँखों का अंजन,खुजली का लोशन,
तहसीलदार की अकड़,सी ओ की पकड़,बेईमानी की जकड़।
सबका रेट हाई है,
महंगाई ही महंगाई है।
वो गुस्से से लाल होकर चौंके,
कुत्ते की माफ़िक़ मुझ पर भौंके,
बोले, बेवकूफ़ परमानेंट हो,
अंड बंड संट हो,
लगता है विरोधी पार्टी के एजेंट हो,
विकास हो रहा है पर तुम नहीं देख पाओगे,
देखना,अच्छे दिन आएंगे तब मान जाओगे,
माना कि कुछ चीजों का रेट बढ़ता जा रहा है,
पर देश भी तो बुलन्दी की सीढ़ियां चढ़ता जा रहा है।
मैंने भी हिम्मत दिखाई,
उनकी आँखों से आँखें मिलाई,
और कहा, साहब
आप भी न जाने क्यों एजेंट की माँ बहन कर रहे हो,
एक ज़ाहिल की तुलना एजेंट से कर रहे हो,
माँ कसम कभी किसी भी पार्टी ने मुझे
अपना एजेंट नही समझा,
सभी दलों के लिए समान हूं किसी ने भी मुझे
डिफरेंट नहीं समझा,
मैं वो हूं जिसकी जिंदगी दमा,मलेरिया,खांसी है
मैं वो हूं जिसे हर रस्सी में दिखती फांसी है,
मैं वो हूं जिसके गन्दे कपड़े देख अधिकारी
केबिन से दुत्कार देते हैं,
कभी यदा कदा इलेक्शन वेलेक्शन के मौके पर
नेता पुचकार देते है,
मैं वो हूँ जिसने सदियों से सर्दी,गर्मी,
बरसात झेला है,
मैं वो हूँ जिसके चारों ओर गमो का मेला है,
मैं वो हूँ जिसका बेटा इलाज़ के अभाव में
दम तोड़ देता है,
मैं वो हूँ जिसपर छोटी सी बात पर सिपाही 
अपना डंडा छोड़ देता है,
मैं वो हूँ जो विकास की आस में रोज बिकता
गया हूं,
अच्छे दिन के प्रलोभनों में फंसकर साबुन सा 
घिसता गया हूँ,
कभी तो सिद्ध हो जाएगा कि मैं भी
इंसान हूँ,
हालांकि मुझे अब भी गर्व है कि मैं
भारत का किसान हूँ।
चलो मैंने भी मान लिया चीजों के दाम बढ़ने से देश
बुलंदियों की सीढ़ी चढ़ रहा है,
"सुमित" यदि गन्ने का भी कुछ रेट बढ़ जाता,
तो क्या देश बुलंदियों की सीढ़ी से गिर जाता?

जो हृदय में बैठे होते हैं

                             Sumit patel

देखो न अँधेरे में तुम और खूबसूरत दिखाई देती हो,
जब कुछ नहीं दिखता तब तुम दिखाई देती हो।
बिलकुल,
अँधेरे में तुम मुझे और स्पष्ट दिखाई देती हो,
और वो भी मनपसन्द स्वरूपों में,
मैं चाहूं तो तुम्हें पर्वत से भी विशाल देखूं,
या कि फूल से ज्यादा सुन्दर देखूं,
चाहूं तो तुम्हें आते हुए निहारूं,
चाहूं तो गुनगुनाते हुए,
चाहूं तो खिलखिलाते हुए निहारूं,
चाहूं तो मुस्कुराते हुए,
चाहूं तो गाल पर हाथ रख सोचते हुए देखूं
चाहूं तो दांतों से कलम दबाते हुए,
चाहूं तो ख़ुशी से उछलते हुए देखूं,
चाहूं तो अचानक चौंकते हुए,
मैं जैसा चाहूं तुम्हें बाधारहित देख सकता हूँ
हाँ सच में
क्योंकि अंधेरे में दृष्टि सीमित और दृश्य असीमित हो जाते हैं,
फिर दृष्टि तो आँखों की और दृश्य हृदय के होते हैं,
दृष्टि उन्हें देखती है जो आँखों के सामने होते हैं,
सुमित' दृश्य उनके बनते हैं जो हृदय में बैठे होते हैं।।

तू मेरा सबसे मंहगा धन

                         Sumit patel


ये तेरा प्यारा प्यारा प्यार,
है जिसमें मीठी सी तकरार,
न होना तू मुझसे बेज़ार,
अरे सुन मेरे वो सरकार,
कि तुमको दिल में बसाया है।
तुम्हीं को ख़ुदा बनाया है।।

है तेरा प्यार बड़ा निर्मल,
कि जैसे गंगा जी का जल,
है ऊंचा जितना अडिग अचल,
ये शीतलता में है सन्दल,
मुझे है बस इतनी दरकार,
तेरा हो महका सा संसार,
कि तुमको दिल में बसाया है।
तुम्हीं को ख़ुदा बनाया है ।।

मेरे प्यार का तू दर्पण,
है मेरा सब तुझको अर्पण,
तू मेरा सबसे महंगा धन,
निछावर तुझपे ये जीवन,
बनूं मैं मीरा की करतार,
पांव में नूपुर की झनकार,
कि तुमको दिल में बसाया है।
तुम्ही को ख़ुदा बनाया है।।

तेरा जब लहराए आंचल,
गगन में छा जाएं बादल,
तुम्हारी बोली कहे गज़ल,
खिलता चेहरा लगे कमल,
चलो अब करलो तुम ऐतबार,
निभाना है बस तुमसे प्यार,
कि तुमको दिल में बसाया है।
तुम्ही को ख़ुदा बनाया ह।।

ये तेरा प्यारा प्यारा प्यार,
है जिसमें मीठी सी तकरार,
न होना तू मुझसे बेज़ार,
अरे सुन मेरे वो सरकार,
कि तुमको दिल में बसाया है।
तुम्हीं को ख़ुदा बनाया है।।

Friday, November 23, 2018

चाँद में तुमसे बात करते रहे

                        Sumit patel


आज फिर दिल तेरे ख्यालों में खो गया ।
भरी महफ़िल तुम बिन अकेला हो गया ।
हम तो चाँद में तुमसे बात करते रहे'सुमित',
जाने कब पूरनमासी रात में सबेरा हो गया।।

राहों में तेरे पलकें बिछी हैं

                         Sumit patel


मुझसे मोहब्बत के सबूत न मांग ऐ मेरे अहल-ए-सनम,
राहों में तेरे पलकें बिछी हैं,होंठों ने क़दमो के निशान चूमे हैं।

Thursday, November 22, 2018

खुदगर्ज़ हूं मग़र इतना नहीं

                         Sumit patel

तेरे भरोसे रहकर मुझे मेरी क़िस्मत आजमाना है।
नफ़रत का पहाड़ काटकर मोहब्बत का दरिया बहाना है।
खुदगर्ज़ हूँ मग़र इतना नहीं कि तेरे इश्क़ पर अफ़सोस करूं,
मेरी जान तुझसे ये मेरा प्यार मुझे आखिरी दम तक निभाना है।।

खुदगर्ज़=selfish.

कि तू मेरी किस्मत .......

                        Sumit patel

यूं तो किसी के आगे सर झुकाना मेरी फ़ितरत में नहीं है,

पर तेरे क़दमो में न झुके सर ये मेरी हिम्मत में नहीं है।

'सुमित"तुम्ही तुम साथ रहती हो मेरे ख़्वाबों ख्यालों में,

क्या फर्क पड़ता है भला कि तू मेरी किस्मत में नही है।।


Sunday, November 18, 2018

मेरा मन तेरा है बावरिया।

                            Sumit patel


मेरे सांवरिया मेरे सांवरिया,
मेरा मन तेरा है बावरिया ।
मेरे सांवरिया मेरे सांवरिया,
सांवरिया ओ मेरे सांवरिया।

तेरे प्रीत की रीत निराली है,
मेरे मन की गागर ख़ाली है,
तेरी मिले झलक तो छलक छलक,
मैं भरलूं अपनी गागरिया।
सांवरिया ओ मेरे सांवरिया,
मेरा मन तेरा है बावरिया।।

विरहन बन पुरवा आई है,
बदरी यादों की लाई है,
अब बरस जा तरस रहे नैना,
बन मिलन की प्यासी बादरिया।
सांवरिया ओ मेरे सांवरिया,
मेरा मन तेरा है बावरिया।।

मेरे नयन तेरे आराधक हैं,
तेरे प्रेम के ही हम साधक हैं,
कुछ प्रेम बहा मेरे मनमितरे,
कर पार ज़रा मन की नैय्या।
सांवरिया ओ मेरे सांवरिया,
मेरा मन तेरा है बावरिया।।

मुस्कान तेरी अलबेली है,
ख़ुशबू सख़ी सहेली है,
कविता बन महक उठो प्रियतम,
मैं नाचूँ बाजे झांझरिया।
सांवरिया ओ मेरे सांवरिया,
मेरा मन तेरा है बावरिया।।


यूं हीं न तेरे दीवाने हैं,
हम आशिक़ कुछ मस्ताने हैं,
पद इधर मेरे मग में रख जा,
लूं चूम जरा पद डागरिया ।
सांवरिया ओ मेरे सांवरिया,
मेरा मन तेरा है बावरिया।।

Saturday, November 17, 2018

तुमको तुमसे ही मैं मांगता रह गया।

                         Sumit patel

लाख उनका करम आ अचानक मिले,

जैसे  बिछड़े हुए  दो कथानक  मिले ।

माना मिलकर भी हम उनसे मिल न सके,

खूबसूरत थे फिर भी वो पल जो मिले ।।


मन में गुलज़ार फूलों की बगिया खिली,

मानों संगम पे आकरके नदियां मिली ।

जिनकी आँखों में ही था बसेरा मेरा,

उनकी आँखों से मेरी ये अंखियां मिली।।


देखकर मैं तुम्हें देखता रह गया ,

तुम बदल क्यूं गये सोचता रह गया।

तुमने देखा मुझे तुम सिमट से गये,

कुछ न मैंने कहा कांपता रह गया।।


तुमको तुमसे ही मैं मांगता रह गया,

जाने क्या क्या वज़ह बेवज़ह कह गया।

तुम आकर बगल से निकल भी गयीं,

कुछ भी कह न सका अनकहा रह गया।।


हाथ जोड़ा जो तुमने चिढ़ा कर गयी,

कर्ज मुझपर नया तुम चढ़ा कर गयी।

छूने देती क़दम ऋण उतरता मेरा ,

मुझको असहाय फिरसे बनाकर गयी।।


देखकर यूँ तुम्हें जाने क्या हो गया,

एकपल को लगा मैं ख़ुदा हो गया।

तेरा जाना भी, जाना, गंवारा नहीं,

फिर भी जाना मुझीसे जुदा हो गया।।

Friday, November 16, 2018

उसमे बड़ा मजा था इसमें भी बस मज़ा ही।

                    Sumit patel

इतना बड़ा गुनाह न इतनी बड़ी ख़ता थी,

तेरी आशिकी ने जाना कितनी बड़ी सजा दी।


थी स्याह रात दुनिया तुम चाँद बनके आये,

इक दीप को सजाया फिर रौशनी बुझा दी।


कैसा अज़ब नज़ारा फूलों की वादियों का,

रूठा हुआ है माली बेज़ार है कली भी ।


पाऊँ भी कैसे तुमको जब खोने को कुछ नहीं,

दिल तो तुम्हारा था ही अब नाम जिंदगी की।


पलकों में सजा लेना,कभी नजरों से गिरा देना,

तूने दोस्ती भी जाना कुछ इस तरह अदा की।


वो साथ होना तेरा फिर मुझसे रूठ जाना,

उसमें बड़ा मज़ा था इसमें भी बस मज़ा ही।।


Thursday, November 15, 2018

तुम होती तो।


                  Kavita ki ek chhoti kalam

तुम होती तो सुन्दर होता

जंगल का हर एक नजारा,

पेड़ों पर बनी झोपडी 

और भी रोचक होती,

कुछ और जरा निखरा होता

नदियों का हर एक किनारा,

उन वृझों को थोड़ा और परिभाषित कर पाता

जिनको सरकार ने संरक्षण दिया है,

उदाहरण में तुम्हें ,

यह बताने का प्रयास करता कि,

तुम भी मेरे प्रेम को मन के किसी सतह में

जरूर संरक्षण कर लेना,

और तुम्हारी बात करूं?

तो तुम तो मेरे मन की भूमि पर

गुलाब के पौधे की तरह उपजी हो,

जिसकी महक को मेरे मन की मिट्टी

अपनी आत्मा तक में संजोये है,

वहाँ के उपवन में खिले फूलों 

के बारे में भी बताता, कि

देखो तुम्हारी बदन की खुश्बू के आगे

इनकी गन्ध मद्धिम सी हो गयी है,

और तुम्हारी हंसी को देखकर

शर्माकर समय से पहले ही मुरझाने लगे हैं।

गेरुआ और घाघरा नदी की गहराई

तुम्हारे आँखों  की गहराई से बहुत कम है,

और हाँ! वो देखो मदमस्त घूम रहे दो हाथी

तुम्हारे प्रेम की विशालता के आगे कितने छोटे हैं,

अभी अभी इधर से भागा है हिरन का जोड़ा

जानते हो क्यों?

कहीं तुम्हारी चंचलता से वह लज्जित न हो जाए,

और जो ये मगर के बच्चे तुम्हे देखकर

पानी में वापस तैरने लगे है,

ये जानते हैं तुम्हारी नजरों के तीर

इनसे ज्यादा घायल कर सकते हैं।

तन के साथ न सही मन के सदा साथ थीं तुम

 तुम्हारी स्मृतियां हर पल राह दिखाती रहीं,

और आज भी देखो न तुम दूर तक नहीं हो,

पर जाने क्यूं, तुम्हारी स्मृतियां मुझसे तुम्हें लिखाती रहीं।

जाने क्यूं "सुमित"मुझसे तुम्हें लिखाती रहीं।।

और हां सच में!

Wednesday, November 14, 2018

मुझे भी याद कर लेना।

                   
सुमित पटेल,

कभी जो घरसे निकलो तो सबक़ ये याद कर लेना,

खुद के बारे में घड़ी भर खुद से ही संवाद कर लेना।

 

मान रखना, मान अभिमान से तुमको ख़ुदा माना,  कभी फुर्सत मिलेतो ख़ुदा मेरे मुझे भी याद कर लेना।।


Tuesday, November 13, 2018

वो मेरी समस्याओं का मुझे हल दे गया ।

           Kavita ki ek chhoti kalam


समझौता कर लेते हैं,
अक्सर ज़िन्दगी में ऐसे पल आ ही जाते हैं,
विवशता की बेड़ियां परिस्थितियों को जकड़ लेती है,
समस्याएं जटिल होकर हौंसले को रौंदना चाहती हैं,
जिजीविषा तमस के आवरण को लपेटकर सो जाती है,
वेदना के उत्तुंग शिखर से अश्रु धार निर्झर बन बह निकलती है,
और फिर अचानक!
धैर्य रखना,राह तकना,मंजिल मिलेगी मन से आत्मा विरहणी कह गुजरती है।
पल तो पल में बीत जाएगा हर्ष का हो या विषाद का,
यत्किंचित वृतांत रह जाएगा भविष्य में अनुवाद का,
छूटना, जकड़ने का और टूटना, बेड़ियों का आगामी अर्थ होता है
और परिस्थितियों का रोना रोना कर्मवाद में सदैव व्यर्थ होता है,
समस्याएं जितना विवश करेंगी, हौंसला उतना ही अदम्य होगा,
संघर्षों से जूझकर आया परिणाम अतुलनीय और सुरम्य होगा,
ऐसे में उसका अकस्मात सम्मुख आ जाना मेरे हौंसले को संबल दे गया,
मौन रहकर ही सही "सुमित" वो मेरी समस्याओं का मुझे हल दे गया।
जिसकी तलाश मैं ख़्वाबों मे करता था वो अपनी झलक मुझे कल दे गया,
मेरा विश्वाश जीवन्त कर गया, मानो वो डूबते को तिनके का बल दे गया।।


Monday, November 12, 2018

एक बार फिर तुम हाथ जोड़ के रुला गये।

                            Sumit patel
                 
                      चलो अच्छा हुआ कि
                      तुम आ गए ,
                      उजड़ी नैनों की दुनिया
                      फिर बसा गए ।
                      तुम अचानक से मुझको क्या मिले,
                      दिल में बिजली बनकर समा गए।
                      आओ एक बार फिर मैं तुम्हारे कदम छू लूँ,
                      एक बार फिर तुम हाथ जोड़ के रुला गये।।

Saturday, November 10, 2018

तेरी सूरत में मुझको ख़ुदा चाहिए।

               
                           Sumit patel 
तुम कहो तो कहूं मुझको क्या चाहिए,
तेरी सूरत में मुझको ख़ुदा चाहिए।

तुम ये मानो न मानो है हक़ीक़त यही,
तेरी यादों का जंगल घना चाहिए ।

तुमको चाहूं तुम्हारी इबादत करूँ,
तुझसे मेरे ख़ुदा ये रज़ा चाहिए ।

है वीरान सी मन की बगिया मेरी,
एक तू ही मुझे बागबाँ चाहिए ।

शामो ओ सहर तुम ज़ेहन में रहो,
दिल में मेरे सदा ये सदा चाहिए ।

दिल है मेरा तुम्हारा ही अपना मकाँ,
तेरा आना वज़ह बेवज़ह चाहिए ।

दूर होकर भी कहां तुम दूर होते हो,
तुम मुझमें हो मुझे और क्या चाहिए।

देखो कभी मुझसे नजर न फ़ेर लेना,
सुमित को तुम्ही तुम रहनुमा चाहिए।।

झुका दिया मैंने मेरे सरको।


                            SUMIT PATEL

तेरे क़दमो में झुका दिया मैंने मेरे सर को,
तमन्ना है इतनी रखूं ऊंचा सदा तेरे सर को।।

रस्म ए उल्फत को चलो मिलकर निभाते हैं,
मोहब्बत में किनारे से न मैं सरकूं न तुम सरको।।

किसी बन्दिश की खातिर सरकना गर जरूरी है,
सरकना है तो सरको कलम करके मेरे सर को।।

Thursday, September 13, 2018

हिंदी दिवस की हार्दिक बधाई।
                         SUMIT PATEL

जग के मस्तक पर राज रही भारत के माथे की बिंदी है,
शब्दों का सामर्थ्य अनन्त, रसभरी, सुपावन हिंदी है।

उच्चारण संग लिए व्याकरण मन हर्षित कर जाती है,
खुसरो, मीरा, सूर, जायसी नित मोती नये लुटाती है।

दिनकर पन्त निराला नीरज गाते गाते कह जाते हैं ,
मानवता की एक धरोहर माँ हिंदी तुमको शीश झुकाते हैं।

You you कह इठलाती दुनिया समझो तो अभिशाप है,
आओ दिखलाएं हिंदी में 'तुम' के संग संग आप है ।

गंगा जैसी पावनता इसकी, सुंदरता में कालिंदी है,
शब्दों का सामर्थ्य अनंत,रसभरी सुपावन हिंदी है।।

Monday, July 30, 2018

महक तेरी किधर नहीं।

       
                                       SUMIT PATEL
घर वही दर वही
नगर वही डगर वही
तय हुआ था जो कभी
है अभी सफर वही
मैं वही नजर वही
तीर वही जिगर वही
ख़ुशबू भरी वादियों में
महक तेरी किधर नहीं।

Friday, July 20, 2018

अधर चुप रहेंगें मगर बात होगी!!!


                                   SUMIT PATEL
कभी मेरी तुमसे मुलाकात होगी।
अधर चुप रहेंगें मगर बात होगी।।

नयन कुछ कहेंगें नये भाव लेकर,
कहो क्यूं गये तुम मुझे घाव देकर।
आँखों से तेरे भी बरसात होगी।
अधर चुप रहेंगें मगर बात होगी।।

ये कलियां ये भौरें ए उपवन,दरीचा,
हैं साक्षी तुम्हें मैंने सन्दल से सींचा।
महक इनकी तेरे सदा साथ होगी।
अधर चुप रहेंगें मगर बात होगी।।

स्मृतियां पुरानी ज़हन में जगेंगीं ,
मेरी  वफ़ा  की  कहानी कहेंगीं ।
खमोशी भी मेरी,तुमसे सवालात होगी।
अधर  चुप  रहेंगें मगर  बात होगी ।।

प्रतीक्षा की बातें मन का दर्पण कहेगा,
यादों  के  मोती  भी  अर्पण  करेगा ।।
मेरी आँखों में आंसू तेरी सौगात होगी।
अधर  चुप  रहेंगें  मगर  बात  होगी ।।

कभी मेरी तुमसे मुलाकात होगी।
अधर चुप रहेंगें मगर बात होगी ।।

Wednesday, July 4, 2018

तुम फिर नहीं आए।

       
                               SUMIT PATEL

लाख जतन करके ये दिल तुमको बुलाए,
आंखे  भी तेरी राह  में पलकें हैं बिछाए ,
तुम फिर नहीं आए, तुम फिर नहीं आए।
तुम फिर नहीं आए,तुम फिर नहीं आए।।

रुत भी बड़ी हसींन, हैं रंगीन नज़ारे ,
हैं प्यार का पैगाम मेरे, चाँद सितारे ,
बादल भी तेरी याद के बरसात ले आए।
तुम फिर नहीं आए,तुम फिर नहीं आए।।

स्वाति की एक बूंद को चातक जो निहारे,
वैसे ही मेरे दिल की सदा तुमको पुकारे।
देखो कि  मेरी आस  कहीं टूट न जाए ।
तुम फिर नहीं आए,तुम फिर नहीं आए।।

प्रीत भरी रीति तेरी , मुझको निभानी,
गाऊं मैं तेरे  गीत लिखूं तेरी  कहानी ,
आ जाओ मिलके सुर से ताल मिलाएं।
तुम फिर नहीं आए,तुम फिर नहीं आए।।

कैसे ये कहूं तुझसे कितना प्यार किया रे,
तन  मन  भी  तेरे वास्ते  निसार  किया रे ,
बाकी  बची है जान, कहीं  जान न जाए ।
तुम फिर नहीं आए, तुम फिर नहीं आए।।

जिसमें ख़ुशी हो तेरी वही काम किया रे ,
रखना इसे संभाल के दिल तुझको दिया रे,
आँखों ने तेरे ख़्वाब के सपनें हैं सजाए ।
तुम फिर नहीं आए,तुम फिर नहीं आए।।

लाख जतन करके ये दिल तुमको बुलाए,
आंखे  भी तेरी राह  में पलकें है बिछाए ,
तुम फिर नहीं आए, तुम फिर नहीं आए।
तुम फिर नहीं आए, तुम फिर नहीं आए।।

Wednesday, June 27, 2018

देख लो तुम पलट कर, सँवर जाएँगें।


                                  SUMIT PATEL


इस तरह हम वफ़ाएं निभा जाएंगें,
तुम कभी भी बुलाओ चले आएंगें।
ज़िन्दगी में तुम्हारी ख़ुशी के लिए ,
जो भी करना पड़े कर गुज़र जाएंगें।।

तेरी  चाहत में  हद  से गुजर  जाएंगें ,
देखना तुम कभी हम भी याद आएंगें।
आईने में कभी खुद को देखोगी जब,
तेरी  सूरत  में भी  हम  नज़र आएंगें।।

छोड़कर तेरे दर को किधर जाएंगें,
तुम जो ऐसे करोगे तो मर  जाएंगें।
मेरा तुझपर है  साथी भरोसा बहुत,
देख लो तुम पलट कर सँवर जाएंगें।।

देखो अरमां संजोकरके हम लाएं हैं,
तेरी यादों  को  रोकरके हम गायें हैं।
यूं न  रूठो चलो  मान जाओ प्रिय ,
हम  तुम्हीं को  मनाने चले आयें हैं।।

तेरी चाहत के बादल सनम छायें हैं,
मेरी आँखों से आंसू निकल आयें हैं।
तुम जो चाहो मैं कर दूँ समर्पित तुम्हें,
गीत  जितने  तुम्हारे  लिए  गायें  हैं।।

होंठ ख़ामोश मन से नजऱ कह गई,
नदी कुछ तो ठहरती लहर  बह गई ।
जीत  कि हार हो, सब गंवारा किया,
जान कब  की गई ज़िन्दगी रह गई ।।

देखो जोरों से चलती हवा कुछ कहे,
किससे मिलने को इतनी आतुर बहे।
आसमां में ये उड़ते जो बादल चलें ,
तुम सुनों, तुमसे  मेरी  कहानी कहें।।

बोल उठा अम्बर से तारा।


                                  SUMIT PATEL

बोल उठा अम्बर से तारा,
फैला है जग में अँधियारा,
मैंने रोकर तुम्हे, पुकारा
रात बहुत लम्बी है यारा।।

प्रथम  पहर है सो  न जाऊं ,
विषम तिमिर में खो न जाऊं।
जब नयनों में, नींद न आए,
कैसे हम अब ख़्वाब सजाएं।
आकर दूर करो तुम कारा ।। रात  बहुत  लम्बी है  यारा ।
बोल उठा........

दीप शिखा बन आ जाओ तुम,
स्वर्ण गगन में  छा जाओ तुम,
जीवन को अनुपम कर जाओ ,
इस दिल का दर्पण बन जाओ।
बस एक तुम्ही उम्मीद, सहारा।। रात बहुत  लम्बी है यारा।
बोल उठा........

साथी तुम, उम्मीद हो मेरे ,
फिर क्यों देरी दीद में तेरे,
तुम बिन धीर धरा न जाये,
कैसे मन को हम समझाएं।
मैंने तो बस तुम्हें पुकारा ।। रात  बहुत  लम्बी  है  यारा।
बोल उठा........

Tuesday, June 26, 2018

मैं गाऊं जितने भी,हर गीत तुम्हारे हो ।

                           
                                   SUMIT PATEL
                       Kavita ki ek chhoti kalam

खुशयों का खज़ाना हो,होठों पे तराना हो।
साथी तू जहां जाए, क़दमों में जमाना हो।।

सब रिश्ते सुन्दर हों, कभी दूर न अपने हों।
जो तुमने  कभी देखे, पूरे  हर  सपनें  हों ।।

हर शाम सुहानी हो, परियों की कहानी हो।
गम  दूर  रहें तुमसे, हँसती जिन्दगानी हो।।

बहकी  पुरवाई हो, ख़ुशबू  संग लाई हो ।
तू कदम जहां रख दे,महकी अंगनाई हो।।

चमके से सितारे हो, हर आँख के तारे हो।
दुनिया भी  मानेगी, तुम  जग से न्यारे हो।।

हर रात दिवाली हो, पूजा की थाली हो ।
होंठों से कही तेरी, हर बात निराली हो ।।

फूलों में बसेरा हो,कलियों का घनेरा हो।
सूरज की किरन के संग, दूर अँधेरा हो।।

पल पल में मस्ती हो,तेरी पलकें हँसतीं हो।
हर खुशियां बसें जाकर,जहां तेरी बस्ती हो।।

रंगीन  नज़ारा  हो, उल्फत  का सहारा हो।
चाहत के  बगीचे में, हर फूल  तुम्हारा हो।।

गुलज़ार गुलिस्तां हो,तेरे मन में सरसता हो।
अमृत से भरा बादल,छा करके बरसता हो।।

सुन्दर  से  नज़ारे हों, मौसम  में बहारें हों ।
मैं  गाऊं  जितने भी, हर गीत  तुम्हारे हों ।।

Friday, June 22, 2018

माफ़ी ही नहीं है।।


                                SUMIT PATEL

बहुत मनाने पर भी नहीं मान सके तुम,सुमित
लगता है मेरी गलती की कोई माफ़ी ही नहीं है।। 

Thursday, June 21, 2018

आओ साथी आदत डालें मिलकर हम सब योग की।।


                               -     SUMIT PATEL

      आज 21 जून है , भारत ही नहीं पूरी दुनिया आज विश्व योग दिवस को बड़े उत्साह से मना रही है। क्योंकि पूरा विश्व योग की अनिवार्यता को पूर्ण रूप से न केवल स्वीकार कर चुका है,बल्कि उसे आत्मसात भी कर रहा है। इसलिए भारत को इसे अति आत्मीयता से ग्रहण करने की आवश्यकता है, केवल इसलिए नहीं की योग दुनिया को भारत ने दिया है। वरन
इसलिए की पूरी मानव सभ्यता के भविष्य  को सुरक्षित करने के लिए योग के क्षेत्र में और अधिक वैज्ञानिक प्रयोग किए जाएं। योग ही केवल एक मात्र ऐसी क्रिया है जिससे शरीर, मष्तिक और मन सभी को स्वस्थ रखा जा सकता है।
इसी सन्दर्भ में मैं एक कविता आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ, यदि कविता सही लगती है तो आप अपने दैनिक जीवन में योग को शामिल कर लीजिए। जिससे आपके तन,मन,और मष्तिष्क की शक्ति और भी प्रखर हो सके।
इसी निवेदन के साथ अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की आपको हार्दिक बधाई। कविता प्रस्तुत है।।

योग है  केवल एक  दवाई  दुनियां  में हर रोग  की ।
आओ साथी आदत डालें मिलकर हम सब योग की।।

ऊर्जा का संचार है अद्भुद जन के तन मन प्राण में,
ध्यान योग से इसे जगाकर सत्कर्म करें संसार में ।
मानवता का पोषण करना एक मात्र अभियान है,
स्वास्थ्य शास्त्र का पाठ पढ़ाये योग एक विज्ञान है।

नफ़रत का  हर भेद मिटायें बात  करें सहयोग की ।
आओ साथी आदत डालें मिलकर हम सब योग की।।

अभी नहीं तो कभी नही,यह जीवन की परिभाषा है,
जब जागो है तभी सबेरा, नित नई नवेली आशा है ।
घोर निराशा, आलस,चिंता,कुंठा,अवसाद मिटाना है,
योग करेंगें  स्वस्थ रहेंगें इस दुनिया को  समझाना है ।

समय से पहले चलो समझ लें कीमत हम निःरोगकी ।
आओ साथी दत डालें मिलकर हम सब योग की ।।

Wednesday, June 20, 2018

चलो कुछ मैं बदलता हूं,चलो कुछ तुम बदल जाओ।

                       
                                -     SUMIT PATEL

बहुत कुछ गुनगुनाते हो, कभी मेरी गजल गाओ,
अँधेरों में भटकता हूँ , बनो सूरज, निकल आओ।
मैं तुमको याद कर लूंगा,तुम मुझको याद आ जाना,
सुमित,कुछ मैं बदल जाऊं, कुछ तुम बदल जाओ।।

चलो कुछ मैं बदलता हूं, चलो कुछ तुम बदल जाओ।।।

देखो देर मत करना ।।

                                -     SUMIT PATEL

उम्मीद बस तुमसे बंधी है,
आस भी  तुमसे लगी है ।
आंधियां निर्लज्ज होकर,
दीपक बुझाने को तुली हैं।
दीप की लौ को बचाने ,
उम्मीद का रिश्ता निभाने,
आस को विश्वास करने ।
मुझे भरोसा है, तुम जरूर आओगे।
लेकिन, देखो देर मत करना ।।

आँख ने आंसू बहाएं हैं,
प्रीत के मोती लुटाए हैं ।
रात अंधेरी है  तो क्या ,
सितारे तो साथ आएं हैं।
आंसू का मान रखने,
प्रीत का सम्मान करने,
रात को उजियार करने।
मुझे भरोसा है, तुम जरूर आओगे।
लेकिन , देखो देर मत करना ।।
"सुमित', देखो देर मत करना ।।

Tuesday, June 19, 2018

मेरा अहंकार टूट गया ।।

                           -    SUMIT PATEL

अब मान भी जाओ,
इतना भी न रुलाओ,
कमी मेरी क्या है,मुझे,
ऐसा तुम कुछ तो बताओ।
कई बार कह चुका हूँ,चलो
फिर से बताता हूं,
तुम क्या जानो सुबह शाम
बस तुम्हारे ही गीत गाता हूं।
तुम्हारे बाद मैंने देख लिया है,
इतना सगा कोई नही पाता हूं।।
जीवन तो गुज़र जायेगा साथी,
चलो अब तुम ही बताओ मुझे
तुम किस कदर दोगे माफ़ी।
मुझे नहीं लगता कि तुमसे कोई
धोखा किया है,
प्यारे मैंने तो बस तुझ पर सदा
भरोसा किया है।
इसके बाद भी तुम्हें मेरी ही कमी
मिलती है।
तो कोई भी सज़ा दो,जितनी भी
तुम्हारी मर्जी है।
पर तेरी बेरुख़ी सहकर जीना सहज
नहीं मुश्किल है,
तुझे हंसते देख लेना ही अब तो,मेरे
जीवन का हासिल है।
हाँ मुझे अहंकार जो भी था, तेरे बगैर
सब टूट गया है,
तेरे अलावा अब क्या बताऊँ तुम्हें, कैसे
मेरा सब छूट गया है।
लो मेरा अहंकार टूट गया है, मैं अब जिद
नहीं करता हूँ।
ऐसे बात बात पर किसी भी तरह से, मैं
नहीं लड़ता हूँ।
काश कोई होता जो मेरी कविताएं तुम्हें,
पूरे मन से सुनाता ।
मैं तुम्हारे बिना बहुत बेचैन हूं, समय समय
पर वक़्त तुमको बताता।
पर अब पानी सर से पार हो गया है,
तुम बिन जीना दुशवार हो गया है ।।
अब तो सहारा दे ही दो
मेरा अहंकार टूट गया।
कम से कम अब तो मान जाओ।
मैं भी टूट गया हूँ , कहीं पर,
और शक हो तो बताओ बहुत कुछ तोड़े जा सकते हैं
कभी कोई पूंछे ओ पन्नें खोले जा सकते हैं।
तुम हंसकर मेरा नाम ले लेना काफ़ी है,
तुम्हारी आस में मेरे हाथों में लकीरें काफ़ी हैं।।

तुम एक बार मिलो मुझे माफ़ करो,
मेरा अहंकार टूट गया है,
पर मेरा तो विश्वास तुझ पर ही है,और
तू ही मुझसे रूठ गया है।
मेरा अहंकार टूट गया है।।

Monday, June 18, 2018

मैं तुझको लिखता जाता हूँ।।

     
                                    -    SUMIT PATEL

इश्क़ की अदालत में कुछ तो पैरवी जारी रख।
सच खुद गवाही देगा ,तू आईने से यारी रख।।

वो ज़ालिम है,तो जुर्म करे, रोका किसने है ,
तू अपना है! चल कुछ तू ही रिश्तेदारी ऱख।।

चट्टानों से टकराना था,तुम ठोकर से ही टूट गए,
हार जीत की बात अलग,हिम्मत कुछ भारी रख।।

तुझपर मरता हूं तो मर जाने दे मुझे,मेरे हमदम
कम से कम  साथ मेरे  इतनी तो खुद्दारी  रख।।

यूं चलने से सफ़ऱ जरा जल्दी तय हो सकता है,
मैं तुझको लिखता जाता हूं, तू पढ़ना जारी रख।।

बिना दर्द के जीना कैसा नीरस हो जाता है, इश्क
विश्क में जीना है तो दिल की एक बीमारी रख।।

तेरी यादों के जंगल में, भोर का इंतजार करना है।


                        -         SUMIT PATEL

मोहब्बत के रास्ते में जब तन्हा हो जाते हैं,
हम बस तेरी यादों के जंगल में खो जाते हैं।।
विशाल देवदारु सा तुम्हार विशाल प्रेम
हृदय की भूमि पर रोज़ रोज़ बढ़ता जाता है,
तुम्हारी नीली आँखों की चंचलता देख,सुन्दर
हिरन का जोड़ा भी लज्जित हो जाता है ।
तुम्हारे शहद में लिपटे मिश्री से मीठे बोल, सुन
कोयल ईर्ष्या से नित नित काली होती जाती है
लरज़ते हुए तुम्हारे गुलाबी होंठों ने, वादियों में
कलियों के खिलने का भरम ही तोड़ दिया।
तुम्हारा होंना हमारे साथ दुनिया को अच्छा न
लगा, तेरे बाद ये जमाना भी छोड़ गया।।
लहराते केश तेरे, बादल बन उमड़कर आसमां
पर छाने वाले है,
तेरी यादों के जंगल में मेरी आँखों से आंसू
बरसने वाले हैं।
देख तेरी यादों के जंगल में अभी भी हरे हैं, कुछ
वफ़ा के पेड़ जो हमने लगाये थे,
सन्नाटा छाया है, पर ध्यान से सुनो, सुनाई देंगें
जो गीत तुम्हें, मैंने सुनाए थे।
"सुमित" तेरी यादों के जंगल में आशा के तीर से
खुशयों का शिकार करना है,
तेरी यादों के जंगल में काली रात हुई,तेरी यादों के
जंगल में अब भोर का इंतजार करना है।।

अब भोर का इंतज़ार करना है।।।।।

Saturday, June 16, 2018

सामने न भी सही, मेरी यादों में रोज आते हो।


                                    -    SUMIT PATEL

तुम तो साथ ही थे,यहां तो मेरा नसीब ले आया,
तुम पर मरना मेरा मुझे मरने के करीब ले आया।।
आज फिर तुम्हें पुकारा,आज तुम फिर नहीं आए,
कल फिर पुकारूंगा,मैं फिर यही उम्मीद ले आया।।

जिधर भी जाओ इश्क़ में बस दर्द है,तन्हाई है ,
कौन है? किसने मोहब्बत पर GST लगाई है।।
सामने न भी सही मेरी यादों में रोज़ आते हो ,
मेरे  मालिक , इसमें भी तेरी ही  रहनुमाई है।।

बहुत मजबूर हूं मैं , तुमसे दूर नहीं हूं।
गमों से चूर हूं मैं, मगर मगरूर नहीं हूं।।
मेरे हालात मेरी क़िस्मत की बेवफाई देखो।
मैं जलकर भी तेरी आँखों का नूर नहीं हूं ।।

तुम्हारी चाहत का नशा अब और बेशुमार हो गया है,
मोहब्बत का तीर नज़र से जिगर के पार हो गया है।
मेरी तो तमन्ना यही है कि तुम्हारे ख्यालों में खोया रहूं,
तुम भी खबर ले लो,कि'सुमित'फिरसे बीमार हो गया है।।

Friday, June 15, 2018

वही पुराना काम करते हैं।


                                 -     SUMIT PATEL

आओ चाहत की इक दास्तां बयान करते हैं ।
तुम अगर कहो तो कहानी सरे आम करते हैं।।

किस कदर किया है प्यार तुम्हें, महसूस तो करो
जान तुम्हारी याद में ही हम सुबह शाम करते हैं।।

ज़माने ने पूरी ईमानदारी से अपना हक़ निभाया,
वो हमें बदनाम करता है,हम उसका नाम करते हैं।।

उसने खुदगर्ज़ तो यूँ ही, मुझे कह दिया "सुमित" ,
उसे क्या पता,दिल में हम क्या अरमान रखते हैं।।

उसका जिक्र करके, कभी मेरी आँखों में झांक लेना
तुम समझ जाओगे, हम उसे ही क्यों सलाम करते हैं।।

दौरेदोस्ती में भी अब तो साहब,निगेहबानी जरूरी है
दोस्त ऐसे भी हैं, काम जो दुश्मन का तमाम करते हैं।।

किरदारों को पहचानना भी कहां आसान है यहां ,
मन में विष की गागर,  मुंह से राम राम करते हैं ।।

ज़रा तुम फिर कदम बढ़ाओ,मैं फिर सज़दा करता हूँ
एक बार फिर दोंनों मिलकर,वही पुराना काम करते हैं।।

चलो मान भी लें कि अभी भी तुम ख़फ़ा हो मुझसे ,
तुम्हारी इसी अदा पर इश्क भी तो हम तमाम करते हैं।।

मंज़िल खुद ही दौड़कर आएगी तुम्हारी, तुम्हारे पास
बेफ़िकर चलो,राहों पर हम फूलों की बरसात करते हैं।।

बुजुर्गों का सहारा बनें, नई पीढ़ी के लिए पेड़ लगाएं।


                           -       SUMIT PATEL

एक घटना घटी, सौभाग्य से नहीं
अपितु दुर्भाग्य से।
और समाचार भी मार्मिकता और करुणा
से भरे मिलने लगे,
की फलाने अब नहीं रहे,
कल तीन बजे ही गुजरे हैं मिट्टी जल्दी ही होगी
वही , कोई दस से ग्यारह बजे।
परिजन, पुरजन पहुँचने लगे
अभी देर है, किसका इंतज़ार है!
पूछने लगे।
गायत्री वाले पंडित जी बुलाये गए ,
अंतिम संस्कार के लिए।
क्योंकि ये भी मामूली थोड़ी थे,
परिवार को बढ़ाने के लिए, क्या
कुछ नहीं किया इन्होंने!
इनके अंतिम संस्कार में लापरवाही
हो, स्वीकारना कठिन है,
बहुत हो चुका पुराना तरीका ,
नए रूप से भी कुछ करना
जरूरी है।
मन्त्रों के उच्चारण के साथ, महकती
धूप की आहुति हो।
शरीर को शांति न दे सके तो क्या हुआ
जीते जी पानी देते तो शरीर पी लेता
पांव दबाते तो शरीर सुखी होता
पौष्टिक भोजन देते तो शरीर का
अहंकार बढ़ता,
पर देह तो नश्वर है उसके साथ कुछ भी
करते साथ थोड़ी जाएगा।
ये तो मिट्टी का बना है, मिट्टी में
ही मिल जायेगा ।
इसलिए आत्मा का सत्कार करो
जो उनके साथ जायेगी।
दूध से नहलाओ गंगा जल से पवित्र करो
क्योंकि बहुत अपवित्र हो गए थे
तुम्हारे साथ रहकर।
तुम्हारी इतनी गन्दी मानसिकता उनका
शरीर भी सहन न कर पाया।
आत्मा क्या ख़ाक सहन कर पाएगी ।
इसलिए कि जिनसे प्यार भरा एक
शब्द भी न बोले कभी,
आत्मा की शांति के लिए अनेक
गायत्री मंत्र पढवाओगे,
जीते जी तुमने पानी तक नहीं दिया,
अब तुम ब्रम्हभोज करवाओगे।
जब हड्डियां दुखी तब तुम दवा नही लाये,
न ही हाथों से कभी सहला पाए।
एक एक हड्डी इकठ्ठा करके, बड़ी तन्मयता
से, हरिद्वार पहुँचाओगे।
मूड़ मुड़वाओगे, भंडारे लगवाओगे,
क्या क्या नहीं करोगे,
पर अर्थ कुछ भी न पाओगे।
बुद्धिहीन कहेंगें, पुरखों के लिए
तुमने हर रस्म अदा की,
अल्पबुद्धि वाले तुम्हारे कर्मों को
समाज का डर बताएंगें ।
पर असल में दोंनों गलत हैं
न तुमने रसमें निभाई और
न ही तुम्हे समाज की चिंता है,
तुम्हें तो बस अपनी चिंता है, अपने
किए अनैतिक कर्मों के प्रति,
तुम डरते हो कि इनके साथ तुमने
कोई सुलभ व्यवहार न किया।
तुमने कभी उनके प्रति अपने कर्तव्यों
को नही समझा।
और तुम्हे लगता है, कहीं उनकी आत्मा
यहीं न हो,
कहीं तुम्हारे कर्मों का तुमसे प्रतिशोध
न लेने आए।
तुम अपने इन्ही पंडितों के ज्ञान से
भयभीत हो,
की आत्मा आएगी, पुकारेगी, डराएगी
इसलिए दान करो,
आत्मा की मुक्ति के लिए।
फिर तुम्हारे स्वार्थ, को उनके शरीर
से मुक्ति चाहिए थी,
सो मिल गयी।
अब तुम्हारे भय को उनकी आत्मा से मुक्ति
चाहिए, इसलिए
तुम भयभीत होकर ये सभी कर्म कांड
करने को उतावले हो जाते हो,
विश्वास कर लेते हो, कि मैंने तो उनकी
सभी इच्छाएं पूरी कर दी।
अपने कर्तव्यों को पूरा करने का झूठा
नाटक करते हो।
कि अब मुझसे कोई सवाल नहीं पूछा
जायेगा,
हर कोई मुझे मातृ- पितृ भक्त बतायेगा ।
पर क्या उस समय ये सत्य किसीसे
छिपा पाओगे,
जब तुम्हारा मन तुमसे पूछेगा, कहो
क्या बताओगे ।
तब पश्चताप भी न होगा जब समय के
साथ खुद को भी यहीं पाओगे।
और हां ये बहुत पुरानी कहावत है"सुमित"
पेड़ जो लगाओगे फल भी वही पाओगे।।
इसलिए आओ कर्मकांडो से पहले भी अपने
कुछ अधूरे कर्तव्य निभाएं,
बुजुर्गों को प्यार दें, उनका सहारा बनें, आने
वालों के लिए आशीर्वाद नहीं,पेड़ लगाएं।।

Thursday, June 14, 2018

इस तरह तुमने भी उम्मीद मेरी रख ली।


                                -     SUMIT PATEL

कुछ इस तरह से आज फिर तुम याद आ गए।
दिल खिल खिला उठा,लगा तुम पास आ गए।।

कैसे कहूं कि दूर बहुत है, मुझसे मेरा ख़ुदा ।
नजरों से चलके जाने कब दिल में समा गए।।

यादों का सिलसिला भी अब कितना हसीन है।
आँखों से देखता था जिन्हें, आँखों में आ गए ।।

कुछ इसलिए भी आपका एहसानमन्द हूँ ।
मन बुझता हुआ चराग था, फिर से जला गए।।

इन आंसुओं का अपना अलग ही उसूल है ।
हम जब भी मिले अकेले, आँखों में आ गए।।

करनी थी कुछ जरूरी बातें भी ज़िन्दगी से ।
मैं कुछ न कह सका, तुम क्या क्या बता गए।।

सब कुछ तुम्ही थे मेरे, सब कुछ तुम्हीं से था।
इक हड़बड़ी में देखो हम सब कुछ गवां गए ।।

"सुमित"इस तरह से तुमने उम्मीद मेरी रख ली।
ख्वाबों में  मेरे आकर तुम  रिश्ता निभा गए ।।





Wednesday, June 13, 2018

आगे जो बढ़े हो प्यारे आगे ही बढ़ो ।।

                          SUMIT PAYEL


कोई भी भरम न ही चिंता तुम करो,
आगे जो बढ़े हो प्यारे आगे ही बढ़ो।
होंगी मुश्किल आसां ये भरोसा तो करो,
आगे जो बढ़े हो प्यारे आगे ही बढ़ो।।

आसमां के चाँद व सितारे बनो तुम,
फूल से खिले हुए नज़ारे बनो  तुम।
गम की दूर दूर तक परछाई न रहे,
महके महके जीवन में रुसवाई न रहे।
पूरे हों जाएं सपने अपने मन जो गढ़ो।
आगे जो बढ़े हो साथी आगे ही बढ़ो।।

कोई भी भरम न ही चिंता तुम करो ,
आगे जो बढ़े हो प्यारे आगे ही बढ़ो।।

चाहे जो भी मौसम हो,सुहाना हो तेरा,
प्यार भरा खुशयों का तराना हो तेरा।
राहों में हों फूल तुम्हे कांटा न मिले ,
आशाओं की बगिया में निराशा न मिले।
मुझको हैं मंजूर जो भी फैसला करो ।
आगे जो बढ़े हो प्यारे आगे ही बढ़ो ।।

कोई भी भरम न ही चिंता तुम करो ,
आगे जो बढ़े हो प्यारे आगे ही बढ़ो।।

हर बुलन्दी हो तुम्हारी ये दुवाएं हैं मेरी,
तेरी यादों की महकी, हवाएं हों  मेरी ।
तेरा  ही  पुजारी , मैं  दीवाना  हूँ  तेरा ,
मुझको भी कुछ जलने दे परवाना हूं तेरा।
मैं सज़दे में लग जाऊं, तुम देवता बनो।
आगे जो  बढ़े हो प्यारे आगे ही बढ़ो ।।

Tuesday, June 12, 2018

असम्भव है जाना की मैं तुम्हें भूल जाऊं।।

   
                                    -      SUMIT PATEL


चाहे तुम रूठो या दुनियां से बिछड़ जाऊं।
असम्भव है जाना की मै तुम्हे भूल जाऊं ।।

जाना,तेरा इश्क़ गहरा समंदर है तो क्या।
हमने भी ठाना है कि तुझमे डूब जाऊं ।।

इतनी बंदिश में जीना,दम घुटने लगा मेरा।
जिंदगी मन करता है शाख़ से छूट जाऊं ।।

तुम भी मुझे मनाओगे बड़ा गुरुर है, सुमित।
सच हो तो कहो, एक बार मैं भी रुठ जाऊं।।

सच्चाई का हश्र ज़माने में तुम भी जानते हो।
अब तुम्ही बताओ सच कहूं या झूठ गाऊं ।।

किसने कब कहाँ कितना सताया है मुझे ।
सोचता हूं तुमसे अभी बताऊं की न बताऊं।।

तुम रूठकर गए न जाने किस डगर साथी ।
मेरी जां मनाने भी तुम्हें जाऊं तो कहां जाऊं।।


  •                              -     सुमित पटेल


Monday, June 11, 2018

जानें कैसे छूटा साथी तेरा मेरा साथ ??


                                     -     SUMIT PATEL

काटे से कटे न दिन बीते नहीं रात ।
जाने कैसे छूटा साथी तेरा मेरा साथ ।।

चलते चलते जाने कैसे रस्ता मुड़ गया,
मन की डाली छोड़कर परिंदा उड़ गया।
छाये बादल मन में हुई नैनों से बरसात।
जानें कैसे छूटा साथी तेरा मेरा साथ ।।

तू जो नहीं राहों का अँधेरा बढ़ा है ,
गम का साया ओढ़े जाने कौन खड़ा है।
कैसे मैं सुनाऊं तुझे अपने ये जज्बात।
जाने कैसे छूटा साथी तेरा मेरा साथ ।।

जगते जगते देखो मेरी किस्मत सो गई,
एक तू ही सब कुछ मेरी नेमत खो गई।
किसको मैं बताऊं किससे करुं फरियाद।
जाने कैसे छूटा साथी तेरा मेरा साथ ।।

मुझको मेरी किस्मत में था जो भी वो मिला,
प्रियतम मेरे तुमसे कोई शिकवा न गिला।
जहां भी तू जाए वहां खुशियां हों दिन रात।
जाने कैसे छूटा साथी तेरा मेरा साथ ।।

काटे से कटे न दिन बीते नहीं रात।
जाने कैसे छूटा साथी तेरा मेरा साथ।।



गुलिस्तां गुलो गुलज़ार करना है....


सुमित पटेल

 चाहते हो बुलन्दी के शिखर तक पहुंचना है, 
कुत्सित विचारों से तुम्हें बचकर निकलना है।।

माँ बाप की दुआएं करती हैं आसान राहों को,
इनकी सेवा से ही,तेरे स्वर्ग का द्वार खुलना है।।

            दुनिया अपने दांव यहां सब पर आजमाती है,
            तुम्हें अपने इरादों को जरा मजबूत करना है।।

अंधेरों से लड़ना है तो दीपक बनकर जलो,
किसी की खुशयों से जलना, ख़ाक जलना है।।

            दरिया की लहरों से ख़ौफ़ज़दा हो गया है वो,
            जो कहता था कभी, समंदर पार करना है ।।

गिरकर उठना इतना भी आसान नहीं,मगर
धक्का किसका था ये दरयाफ़्त करना है ।।

             ये आरोप सच है,हम अब ज्यादा मुस्कराते हैं
             तुम्हें ज़माने की नजरों में महफ़ूज रखना है ।।

निराशा के अंधेरे में कहीं मैं खो नहीं जाऊं ,
उम्मीद का सूरज तुझे बनकर निकलना है।।

             ख़ूबसूरत वादियों कुछ तरीके तो बताओ,
             उसके गुलिस्तां को गुलो गुलज़ार करना है।।

मौत भी अब व्यंग करके लौट गई,"सुमित"
जिन्दा रहकर भी यहां  हर रोज़ मरना है ।।



Saturday, June 9, 2018

अब भी आस तुम्हारी है ।


                                      -     Sumit patel

अपनी तो जाहिर कर दी
अब उसकी बारी है।
           जंग छिड़े या इश्क निभे ,
           पूरी तैयारी है।
जुल्मों की बात करें तो,
अब भी जारी है।
           कितना भी हो घना अँधेरा,
           जलता दीपक भारी है।
वीराने में दाने बिखरे ,
बैठा कहीं शिकारी है।
           मर्जी जितनी उतना दे दो,
           गम से रिश्तेदारी है।
यूँ सीने में दर्द का बढ़ना ,
दिल की एक बीमारी है।
           वो कब मुझको धोखा देगी,
           देख वो जग से न्यारी है ।
मैं और उसे भूल भी जाऊं,
किसकी राय सुमारी है।
           कलम लिखेगी केवल सच ही
           अपनी भी खुद्दारी है ।
तब भी बस तुमसे ही आशा थी,
अब भी आस तुम्हारी है ।।

Friday, June 8, 2018

अब भी क्या मजबूरी है।


बड़े गर्व से संघर्ष विराम का फरमान सुना दिया,
भारतीय सैनिकों के संघर्ष को और बढ़ा दिया ।
संघर्ष पर विराम तो नहीं लगा पाए आप, साहब
विराम,अपने ही जवानों के जीवन पर लगा दिया।।


भैंस के आगे बीन बजाना साहब जी अब ठीक नहीं,
अबके भी यदि चूक गए तो आगे फिर उम्मीद नहीं।।

आतंकी पागल कुत्तों का अब मरना बहुत जरूरी है ,
चार साल तो बीत गए पर अब भी क्या मजबूरी है ।।

कुछ काम अभी जो बाक़ी हैं उनको तो करना होगा,
घायल भारत माता के हर घावों को भरना होगा।।

छोटा सा एक सूअर पड़ोसी नित आँख दिखा गुर्राता है
तुम कहते हो दुनिया भर में भारत का परचम लहराता है।।

ये बात मान भी सकते थे यदि पाकिस्तान सधा होता  ,
वीर जवानों की क़ुरबानी का बदला अगर लिया होता  ।।

Thursday, June 7, 2018

ऐ बादल, तू मेरे लिए बस गरजना छोड़ दे ।


भोर पहर शांति प्रिय वातावरण में,
चिड़ियां चहक रही थी।

लोग योगासन, व्यायाम, बच्चे
मैदान में खेल रहे थे।

फूल खिलने को आतुर से,भौंरें
प्रतीक्षारत प्रेमी लग रहे थे।

कि अचानक एक घना अँधेरा
पृथ्वी पर छाने लगा,

ऐसा लगा मानो रात के बाद, फिर से
रात होने वाली है।

चीजें अँधेरे में बदलने लगी, और
आँखों की पुतलियां फैलने लगीं।

फूल भी खिलते खिलते रुक से गये,
भौरें उदासी में डूब गए।

शायद सूरज भी किसी बहकावे में,
आकर छुपकर बैठ गया है।

बड़े जोर से हवा का झोंका आकर
हौले से गुजर गया,

महसूस होने लगा यह कुछ और नहीं,
बादल की अपनी पीड़ा है।

वह अपने किसी प्रिय को मनाना चाहता है,
और सूरज भी उसकी पीड़ा समझकर
कहीं दूर निकल गया है।

हवा ने भी उसका सन्देश वाहक बनना
स्वीकार कर लिया है,

अपने प्रेम को स्पष्ट करने के लिए ,
बादल कितने जतन करता है।

पहले अँधेरा फैलाकर चुपके चुपके,
अपने प्रियतम को खोजता है।

फिर बिजली की टॉर्च जलाकर, प्रिय
को देखना चाहता है ।

पर सफलता नहीं मिलती देख ,
विचारों में खो जाता है।

पुनः तैयार होकर भयंकर रूप
से गरजकर चीखता है।

बार बार गरजता है, और उसे
बार बार पुकारता है।

एक बार फिर से बादल ,
खाली हाथ रह जाता है।

निराश होकर जोर जोर से
रोने लगता है।

झूम झूम कर बरसता है, बादल
रोते, रोते तरसता है ,बादल ।

और फिर बीच बीच में गरजकर,
उसे पुकारता जाता है।

और फिर धीरे धीरे निराश होकर,
बैठ जाता है।

हे प्रिय बादल तुम्हारा ऐसे निराश,
होना नहीं अच्छा ।

लगता तुझे तेरे प्रियतम पर भरोसा
नहीं है सच्चा।

मित्र थोड़ा धीरज भी रखना तो जरूरी है,
सॉरी, मैं क्या जानू तुम्हारी क्या मजबूरी है।

लेकिन फिर भी हे बादल तुम जैसे
भी चाहो करो।

जितना भी बरसकर रोना चाहो रोओ
मेरे आंसुओं को भी साथ ले लो ।

पर हे प्यारे बादल तुमसे एक प्रार्थना है
तुम्हें उसकी सपथ जिसे तुम प्यार करते हो, मान लेना।

सब कुछ करना जो भी अच्छा लगे तुम्हें,
पर अबसे गरजना छोड़ देना।

क्योंकि तू इधर अपने प्रिय के लिए गरजता है,
उधर तेरे गर्जन से मेरा प्रिय चौक जाता होगा।

सच बोलता हूं भाई जब जब भी तू गरजता था,
मेरा साथी हाथों से कान बन्दकरके चौक जाता था ।

उसके चौकने से मेरा कलेजा बैठ जाता था,
दिल पर मानों बिजली सी गिर जाती थी।

हो न हो वो अब भी चौक जाता हो, जब
तेरे गर्जन की कर्कश ध्वनि उसके कानों में लगती हों।

इसलिए हे अम्बर तेरे लिए मैं दुवाएं करूँगा,
तू मेरे लिए बस गरजना छोड़ दे।
हो सके तो तू मेरे लिए ये गरजना छोड़ दे।
तू गरजना छोड़ दे........
 
                        -     सुमित पटेल