Sumit patel
मुझे याद है थोड़ा थोड़ा,
कि तुमने भी मेरी आँखों से नज़र मिलाई थी।
मेरे इधर उधर ढूँढने में तुम भी मुझे ढूंढती नज़र आई थी।
मैं तुम्हें देखूं उसी समय तुम भी मुझे देखो,
ऐसा अकस्मात तो नहीं हो सकता,
एक दो बार को मानूँ हर बार तो नहीं हो सकता,
मैंने देखा कि नजरों से नजरें तुमने भी मिलाई थी,
कुछ न होकर मेरी सबकुछ बनकर नजरों के सामने
आईं थी,
मेरी हर भूल पर टोका था तुमने,
कुछ भी न कहकर बहुत कुछ कहा था तुमने,
मैंने देखा तम्हे, मेरे हाथों में नशीला पदार्थ देख
नाराजगी से नजरें फेर लेना,
और उसे फेंकते ही निश्छलता से तेरा
मुस्करा देना,
फ़िकर में मेरी कहा था तुमने,
इस तरह बीमार होकर सर्दी में घूमना अच्छी बात नहीं है,
जल्दी घर जाओ आराम करो,तुम्हारी आवाज भी
बदल गयी है,
ऐसी बहुत सी बातें तुम्हें बताऊं जो बीत गयी हैं,
कभी हाथ पकड़कर तुम्हारा वो अपना काटकर फेंका कलावा चेक करना, जो आज भी सुरक्षित है।
और तो और तुम्हारी आंख में मैंने अपनी रूह की हर
ख़ुशी पाई थी,
ऐसे वैसे ही सही पर तुमने भी नज़र मिलाने की हर
रस्म निभाई थी,
मैंने भरी महफ़िल देखा है कि मैं तुम्हें,और
तुम मुझे ढूंढ रही थी,
तुम्हारे इशारों में ही मेरी कविता हो रही थी।
मंच पर खड़ा मैं केवल बोल रहा था,
तुम्हें कैसे समझाऊं कविता के भाव, सोच रहा था,
कविता का रस बदलने से तुम्हें नाराज़ देख
मैं फिर श्रंगार गाने लग गया था,
शायद तुम्हें अब भी याद हो वो पल
बड़े अधिकार से जब तुमने,कविता खत्म करने पर इशारों से ऐतराज जताया था,
और उस ऐतराज को तुम्हारा आदेश मानकर मैंने
एक गीत और गाया था,
असम्भव प्रेम!मैंने क्या कहा,तुम चौंक जो गये,
अब क्या शेष बचा था जो तुम कह न गये,
वैसे भी तुम्हारी आँखों में मैंने घंटों निहारा है,जहां बस
निश्छलता के शिवा कुछ और न मिला,
लोग कहते हैं जहां निश्छल भाव होगा।
वहीं दया,करुणा,प्रेम,स्नेह और लगाव होगा।
जहां दया,करुणा,प्रेम,स्नेह और लगाव होगा,
वहां नदियों सा भटकाव नहीं कुएँ सा ठहराव होगा।।
गूंगे की तरह प्रेम के मीठे फल का स्वाद
कैसे मैं बताता,
तुम्हीं कहो तुम्हारी निश्छल आँखों में डूबने से
खुद को कैसे मैं बचाता।।
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