Sumit patel
गुलशन से कली को बेज़ार कर गया।
वह फिर से अपनी हदें पार कर गया।।
मैं खिलौना ही था तो मुझसे खेलता वो,
मैं टूटा भी नहीं और दरकिनार कर गया।।
जो भी कहा, मुस्कुराकर कहा था उसने,
मैं और करता भी क्या ऐतबार कर गया।।
उसके चेहरे पर मोहब्बत की लिखावट थी,
जिसे पढ़ते ही मैं उससे प्यार कर गया ।।
आशियाने से दूरी उसे क्योंकर गंवारा थी,
शज़र रोता रहा परिंदा आजाद कर गया।।
उसकी यादों को सँजोने के शिवा करूं भी क्या,
जो हर बार करता था वही इस बार कर गया।।
वक़्त से वक़्त माँगा था वक़्त बेवक़्त रोने को,
कमबख़्त वक़्त ज़ो ठहरा इनकार कर गया।।
बिछड़कर भी 'सुमित' अब फ़क्र है उस पर,
उसी की आरजू थी उसी को प्यार कर गया।।
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