Sumit patel
देखो न अँधेरे में तुम और खूबसूरत दिखाई देती हो,
जब कुछ नहीं दिखता तब तुम दिखाई देती हो।
बिलकुल,
अँधेरे में तुम मुझे और स्पष्ट दिखाई देती हो,
और वो भी मनपसन्द स्वरूपों में,
मैं चाहूं तो तुम्हें पर्वत से भी विशाल देखूं,
या कि फूल से ज्यादा सुन्दर देखूं,
चाहूं तो तुम्हें आते हुए निहारूं,
चाहूं तो गुनगुनाते हुए,
चाहूं तो खिलखिलाते हुए निहारूं,
चाहूं तो मुस्कुराते हुए,
चाहूं तो गाल पर हाथ रख सोचते हुए देखूं
चाहूं तो दांतों से कलम दबाते हुए,
चाहूं तो ख़ुशी से उछलते हुए देखूं,
चाहूं तो अचानक चौंकते हुए,
मैं जैसा चाहूं तुम्हें बाधारहित देख सकता हूँ
हाँ सच में
क्योंकि अंधेरे में दृष्टि सीमित और दृश्य असीमित हो जाते हैं,
फिर दृष्टि तो आँखों की और दृश्य हृदय के होते हैं,
दृष्टि उन्हें देखती है जो आँखों के सामने होते हैं,
सुमित' दृश्य उनके बनते हैं जो हृदय में बैठे होते हैं।।
देखो न अँधेरे में तुम और खूबसूरत दिखाई देती हो,
जब कुछ नहीं दिखता तब तुम दिखाई देती हो।
बिलकुल,
अँधेरे में तुम मुझे और स्पष्ट दिखाई देती हो,
और वो भी मनपसन्द स्वरूपों में,
मैं चाहूं तो तुम्हें पर्वत से भी विशाल देखूं,
या कि फूल से ज्यादा सुन्दर देखूं,
चाहूं तो तुम्हें आते हुए निहारूं,
चाहूं तो गुनगुनाते हुए,
चाहूं तो खिलखिलाते हुए निहारूं,
चाहूं तो मुस्कुराते हुए,
चाहूं तो गाल पर हाथ रख सोचते हुए देखूं
चाहूं तो दांतों से कलम दबाते हुए,
चाहूं तो ख़ुशी से उछलते हुए देखूं,
चाहूं तो अचानक चौंकते हुए,
मैं जैसा चाहूं तुम्हें बाधारहित देख सकता हूँ
हाँ सच में
क्योंकि अंधेरे में दृष्टि सीमित और दृश्य असीमित हो जाते हैं,
फिर दृष्टि तो आँखों की और दृश्य हृदय के होते हैं,
दृष्टि उन्हें देखती है जो आँखों के सामने होते हैं,
सुमित' दृश्य उनके बनते हैं जो हृदय में बैठे होते हैं।।
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