- SUMIT PATEL
कुछ इस तरह से आज फिर तुम याद आ गए।
दिल खिल खिला उठा,लगा तुम पास आ गए।।
कैसे कहूं कि दूर बहुत है, मुझसे मेरा ख़ुदा ।
नजरों से चलके जाने कब दिल में समा गए।।
यादों का सिलसिला भी अब कितना हसीन है।
आँखों से देखता था जिन्हें, आँखों में आ गए ।।
कुछ इसलिए भी आपका एहसानमन्द हूँ ।
मन बुझता हुआ चराग था, फिर से जला गए।।
इन आंसुओं का अपना अलग ही उसूल है ।
हम जब भी मिले अकेले, आँखों में आ गए।।
करनी थी कुछ जरूरी बातें भी ज़िन्दगी से ।
मैं कुछ न कह सका, तुम क्या क्या बता गए।।
सब कुछ तुम्ही थे मेरे, सब कुछ तुम्हीं से था।
इक हड़बड़ी में देखो हम सब कुछ गवां गए ।।
"सुमित"इस तरह से तुमने उम्मीद मेरी रख ली।
ख्वाबों में मेरे आकर तुम रिश्ता निभा गए ।।
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