Thursday, June 7, 2018

एक हार जो हर जीत से बड़ी है।


अजीब बात है, उसे इसका गुरुर है , कि वो

अपने दिमाग़ की शातिर चालों से जीत गया।

उसे कहो, वह जानता ही नहीं, कि उसके साथ

दिमाग नहीं, हमेशा दिल लगाया है मैंने, दिल!

जिससे दिल लग जाए वो दिल का अपना होता है।

और फिर, खेल जब अपने ही खेलते हों,

तो हार जाना, बहुत अच्छा लगता है  ।

क्योंकि अपनी ही उंगली से दुःख जाने पर,

आंखें रोती तो हैं पर शिकायत नहीं करतीं।

ये हार भी इतनी कीमती होती है , कि

दोबारा जीतने की इच्छा ही मर जाती है ।

सुना है हर खेल के कुछ नियम,तरीके होते हैं,

मोहब्बत की राह में भी कुछ ऐसा ही था, पर

जहां हमने दिल उसने वहां दिमाग़ लगाया।

नियम तोड़कर खेल खेलना चीटिंग कहलाता है।

पता नहीं दिमाग़ का दिल से खेलना, क्या कहलाता है?

जब कभी वो अपनी जीत का विश्लेषण करेगा ,

देखना मेरी पराजय तब विजय से भी बड़ी होगी ।

देखते देखते वो दिन भी आ जायेगा, भले देर से ही ,

कि उसका जीतना ,शायद उसे ही अच्छा न लगे ।

मेरी शिकस्त को सोंचकर उसकी आंखें भर जाएं

शायद कल उसको भी लगे कि निर्दोष था मैं,और

न ही कोई छल कपट किया था मैंने उसके साथ ।

हो सकता है तब वो मुझे माफ़ कर दे, उस ख़ता

के लिए,जिसे मैंने किया नहीं, पर आरोप है मुझपर।

क्योंकि बिना कारण के अगर वो सजा दे सकता है,

तो मैं अब, बेगुनाह होकर भी उससे क्षमा मांगता हूं।
                          -          सुमित पटेल

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