- SUMIT PATEL
अब मान भी जाओ,
इतना भी न रुलाओ,
कमी मेरी क्या है,मुझे,
ऐसा तुम कुछ तो बताओ।
कई बार कह चुका हूँ,चलो
फिर से बताता हूं,
तुम क्या जानो सुबह शाम
बस तुम्हारे ही गीत गाता हूं।
तुम्हारे बाद मैंने देख लिया है,
इतना सगा कोई नही पाता हूं।।
जीवन तो गुज़र जायेगा साथी,
चलो अब तुम ही बताओ मुझे
तुम किस कदर दोगे माफ़ी।
मुझे नहीं लगता कि तुमसे कोई
धोखा किया है,
प्यारे मैंने तो बस तुझ पर सदा
भरोसा किया है।
इसके बाद भी तुम्हें मेरी ही कमी
मिलती है।
तो कोई भी सज़ा दो,जितनी भी
तुम्हारी मर्जी है।
पर तेरी बेरुख़ी सहकर जीना सहज
नहीं मुश्किल है,
तुझे हंसते देख लेना ही अब तो,मेरे
जीवन का हासिल है।
हाँ मुझे अहंकार जो भी था, तेरे बगैर
सब टूट गया है,
तेरे अलावा अब क्या बताऊँ तुम्हें, कैसे
मेरा सब छूट गया है।
लो मेरा अहंकार टूट गया है, मैं अब जिद
नहीं करता हूँ।
ऐसे बात बात पर किसी भी तरह से, मैं
नहीं लड़ता हूँ।
काश कोई होता जो मेरी कविताएं तुम्हें,
पूरे मन से सुनाता ।
मैं तुम्हारे बिना बहुत बेचैन हूं, समय समय
पर वक़्त तुमको बताता।
पर अब पानी सर से पार हो गया है,
तुम बिन जीना दुशवार हो गया है ।।
अब तो सहारा दे ही दो
मेरा अहंकार टूट गया।
कम से कम अब तो मान जाओ।
मैं भी टूट गया हूँ , कहीं पर,
और शक हो तो बताओ बहुत कुछ तोड़े जा सकते हैं
कभी कोई पूंछे ओ पन्नें खोले जा सकते हैं।
तुम हंसकर मेरा नाम ले लेना काफ़ी है,
तुम्हारी आस में मेरे हाथों में लकीरें काफ़ी हैं।।
तुम एक बार मिलो मुझे माफ़ करो,
मेरा अहंकार टूट गया है,
पर मेरा तो विश्वास तुझ पर ही है,और
तू ही मुझसे रूठ गया है।
मेरा अहंकार टूट गया है।।
अब मान भी जाओ,
इतना भी न रुलाओ,
कमी मेरी क्या है,मुझे,
ऐसा तुम कुछ तो बताओ।
कई बार कह चुका हूँ,चलो
फिर से बताता हूं,
तुम क्या जानो सुबह शाम
बस तुम्हारे ही गीत गाता हूं।
तुम्हारे बाद मैंने देख लिया है,
इतना सगा कोई नही पाता हूं।।
जीवन तो गुज़र जायेगा साथी,
चलो अब तुम ही बताओ मुझे
तुम किस कदर दोगे माफ़ी।
मुझे नहीं लगता कि तुमसे कोई
धोखा किया है,
प्यारे मैंने तो बस तुझ पर सदा
भरोसा किया है।
इसके बाद भी तुम्हें मेरी ही कमी
मिलती है।
तो कोई भी सज़ा दो,जितनी भी
तुम्हारी मर्जी है।
पर तेरी बेरुख़ी सहकर जीना सहज
नहीं मुश्किल है,
तुझे हंसते देख लेना ही अब तो,मेरे
जीवन का हासिल है।
हाँ मुझे अहंकार जो भी था, तेरे बगैर
सब टूट गया है,
तेरे अलावा अब क्या बताऊँ तुम्हें, कैसे
मेरा सब छूट गया है।
लो मेरा अहंकार टूट गया है, मैं अब जिद
नहीं करता हूँ।
ऐसे बात बात पर किसी भी तरह से, मैं
नहीं लड़ता हूँ।
काश कोई होता जो मेरी कविताएं तुम्हें,
पूरे मन से सुनाता ।
मैं तुम्हारे बिना बहुत बेचैन हूं, समय समय
पर वक़्त तुमको बताता।
पर अब पानी सर से पार हो गया है,
तुम बिन जीना दुशवार हो गया है ।।
अब तो सहारा दे ही दो
मेरा अहंकार टूट गया।
कम से कम अब तो मान जाओ।
मैं भी टूट गया हूँ , कहीं पर,
और शक हो तो बताओ बहुत कुछ तोड़े जा सकते हैं
कभी कोई पूंछे ओ पन्नें खोले जा सकते हैं।
तुम हंसकर मेरा नाम ले लेना काफ़ी है,
तुम्हारी आस में मेरे हाथों में लकीरें काफ़ी हैं।।
तुम एक बार मिलो मुझे माफ़ करो,
मेरा अहंकार टूट गया है,
पर मेरा तो विश्वास तुझ पर ही है,और
तू ही मुझसे रूठ गया है।
मेरा अहंकार टूट गया है।।
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