- SUMIT PATEL
चाहे तुम रूठो या दुनियां से बिछड़ जाऊं।
असम्भव है जाना की मै तुम्हे भूल जाऊं ।।
जाना,तेरा इश्क़ गहरा समंदर है तो क्या।
हमने भी ठाना है कि तुझमे डूब जाऊं ।।
इतनी बंदिश में जीना,दम घुटने लगा मेरा।
जिंदगी मन करता है शाख़ से छूट जाऊं ।।
तुम भी मुझे मनाओगे बड़ा गुरुर है, सुमित।
सच हो तो कहो, एक बार मैं भी रुठ जाऊं।।
सच्चाई का हश्र ज़माने में तुम भी जानते हो।
अब तुम्ही बताओ सच कहूं या झूठ गाऊं ।।
किसने कब कहाँ कितना सताया है मुझे ।
सोचता हूं तुमसे अभी बताऊं की न बताऊं।।
तुम रूठकर गए न जाने किस डगर साथी ।
मेरी जां मनाने भी तुम्हें जाऊं तो कहां जाऊं।।
- - सुमित पटेल
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