Saturday, June 9, 2018

अब भी आस तुम्हारी है ।


                                      -     Sumit patel

अपनी तो जाहिर कर दी
अब उसकी बारी है।
           जंग छिड़े या इश्क निभे ,
           पूरी तैयारी है।
जुल्मों की बात करें तो,
अब भी जारी है।
           कितना भी हो घना अँधेरा,
           जलता दीपक भारी है।
वीराने में दाने बिखरे ,
बैठा कहीं शिकारी है।
           मर्जी जितनी उतना दे दो,
           गम से रिश्तेदारी है।
यूँ सीने में दर्द का बढ़ना ,
दिल की एक बीमारी है।
           वो कब मुझको धोखा देगी,
           देख वो जग से न्यारी है ।
मैं और उसे भूल भी जाऊं,
किसकी राय सुमारी है।
           कलम लिखेगी केवल सच ही
           अपनी भी खुद्दारी है ।
तब भी बस तुमसे ही आशा थी,
अब भी आस तुम्हारी है ।।

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