- SUMIT PATEL
काटे से कटे न दिन बीते नहीं रात ।
जाने कैसे छूटा साथी तेरा मेरा साथ ।।
चलते चलते जाने कैसे रस्ता मुड़ गया,
मन की डाली छोड़कर परिंदा उड़ गया।
छाये बादल मन में हुई नैनों से बरसात।
जानें कैसे छूटा साथी तेरा मेरा साथ ।।
तू जो नहीं राहों का अँधेरा बढ़ा है ,
गम का साया ओढ़े जाने कौन खड़ा है।
कैसे मैं सुनाऊं तुझे अपने ये जज्बात।
जाने कैसे छूटा साथी तेरा मेरा साथ ।।
जगते जगते देखो मेरी किस्मत सो गई,
एक तू ही सब कुछ मेरी नेमत खो गई।
किसको मैं बताऊं किससे करुं फरियाद।
जाने कैसे छूटा साथी तेरा मेरा साथ ।।
मुझको मेरी किस्मत में था जो भी वो मिला,
प्रियतम मेरे तुमसे कोई शिकवा न गिला।
जहां भी तू जाए वहां खुशियां हों दिन रात।
जाने कैसे छूटा साथी तेरा मेरा साथ ।।
काटे से कटे न दिन बीते नहीं रात।
जाने कैसे छूटा साथी तेरा मेरा साथ।।
No comments:
Post a Comment