- SUMIT PATEL
इश्क़ की अदालत में कुछ तो पैरवी जारी रख।
सच खुद गवाही देगा ,तू आईने से यारी रख।।
वो ज़ालिम है,तो जुर्म करे, रोका किसने है ,
तू अपना है! चल कुछ तू ही रिश्तेदारी ऱख।।
चट्टानों से टकराना था,तुम ठोकर से ही टूट गए,
हार जीत की बात अलग,हिम्मत कुछ भारी रख।।
तुझपर मरता हूं तो मर जाने दे मुझे,मेरे हमदम
कम से कम साथ मेरे इतनी तो खुद्दारी रख।।
यूं चलने से सफ़ऱ जरा जल्दी तय हो सकता है,
मैं तुझको लिखता जाता हूं, तू पढ़ना जारी रख।।
बिना दर्द के जीना कैसा नीरस हो जाता है, इश्क
विश्क में जीना है तो दिल की एक बीमारी रख।।
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