SUMIT PATEL
बोल उठा अम्बर से तारा,
फैला है जग में अँधियारा,
मैंने रोकर तुम्हे, पुकारा
रात बहुत लम्बी है यारा।।
प्रथम पहर है सो न जाऊं ,
विषम तिमिर में खो न जाऊं।
जब नयनों में, नींद न आए,
कैसे हम अब ख़्वाब सजाएं।
आकर दूर करो तुम कारा ।। रात बहुत लम्बी है यारा ।
बोल उठा........
दीप शिखा बन आ जाओ तुम,
स्वर्ण गगन में छा जाओ तुम,
जीवन को अनुपम कर जाओ ,
इस दिल का दर्पण बन जाओ।
बस एक तुम्ही उम्मीद, सहारा।। रात बहुत लम्बी है यारा।
बोल उठा........
साथी तुम, उम्मीद हो मेरे ,
फिर क्यों देरी दीद में तेरे,
तुम बिन धीर धरा न जाये,
कैसे मन को हम समझाएं।
मैंने तो बस तुम्हें पुकारा ।। रात बहुत लम्बी है यारा।
बोल उठा........
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