- SUMIT PATEL
आओ चाहत की इक दास्तां बयान करते हैं ।
तुम अगर कहो तो कहानी सरे आम करते हैं।।
किस कदर किया है प्यार तुम्हें, महसूस तो करो
जान तुम्हारी याद में ही हम सुबह शाम करते हैं।।
ज़माने ने पूरी ईमानदारी से अपना हक़ निभाया,
वो हमें बदनाम करता है,हम उसका नाम करते हैं।।
उसने खुदगर्ज़ तो यूँ ही, मुझे कह दिया "सुमित" ,
उसे क्या पता,दिल में हम क्या अरमान रखते हैं।।
उसका जिक्र करके, कभी मेरी आँखों में झांक लेना
तुम समझ जाओगे, हम उसे ही क्यों सलाम करते हैं।।
दौरेदोस्ती में भी अब तो साहब,निगेहबानी जरूरी है
दोस्त ऐसे भी हैं, काम जो दुश्मन का तमाम करते हैं।।
किरदारों को पहचानना भी कहां आसान है यहां ,
मन में विष की गागर, मुंह से राम राम करते हैं ।।
ज़रा तुम फिर कदम बढ़ाओ,मैं फिर सज़दा करता हूँ
एक बार फिर दोंनों मिलकर,वही पुराना काम करते हैं।।
चलो मान भी लें कि अभी भी तुम ख़फ़ा हो मुझसे ,
तुम्हारी इसी अदा पर इश्क भी तो हम तमाम करते हैं।।
मंज़िल खुद ही दौड़कर आएगी तुम्हारी, तुम्हारे पास
बेफ़िकर चलो,राहों पर हम फूलों की बरसात करते हैं।।
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