Sumit patel
तुम कहो तो कहूं मुझको क्या चाहिए,
तेरी सूरत में मुझको ख़ुदा चाहिए।
तुम ये मानो न मानो है हक़ीक़त यही,
तेरी यादों का जंगल घना चाहिए ।
तुमको चाहूं तुम्हारी इबादत करूँ,
तुझसे मेरे ख़ुदा ये रज़ा चाहिए ।
है वीरान सी मन की बगिया मेरी,
एक तू ही मुझे बागबाँ चाहिए ।
शामो ओ सहर तुम ज़ेहन में रहो,
दिल में मेरे सदा ये सदा चाहिए ।
दिल है मेरा तुम्हारा ही अपना मकाँ,
तेरा आना वज़ह बेवज़ह चाहिए ।
दूर होकर भी कहां तुम दूर होते हो,
तुम मुझमें हो मुझे और क्या चाहिए।
देखो कभी मुझसे नजर न फ़ेर लेना,
सुमित को तुम्ही तुम रहनुमा चाहिए।।
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