तुमको तुमसे ही मैं मांगता रह गया।
Sumit patel
लाख उनका करम आ अचानक मिले,
जैसे बिछड़े हुए दो कथानक मिले ।
माना मिलकर भी हम उनसे मिल न सके,
खूबसूरत थे फिर भी वो पल जो मिले ।।
मन में गुलज़ार फूलों की बगिया खिली,
मानों संगम पे आकरके नदियां मिली ।
जिनकी आँखों में ही था बसेरा मेरा,
उनकी आँखों से मेरी ये अंखियां मिली।।
देखकर मैं तुम्हें देखता रह गया ,
तुम बदल क्यूं गये सोचता रह गया।
तुमने देखा मुझे तुम सिमट से गये,
कुछ न मैंने कहा कांपता रह गया।।
तुमको तुमसे ही मैं मांगता रह गया,
जाने क्या क्या वज़ह बेवज़ह कह गया।
तुम आकर बगल से निकल भी गयीं,
कुछ भी कह न सका अनकहा रह गया।।
हाथ जोड़ा जो तुमने चिढ़ा कर गयी,
कर्ज मुझपर नया तुम चढ़ा कर गयी।
छूने देती क़दम ऋण उतरता मेरा ,
मुझको असहाय फिरसे बनाकर गयी।।
देखकर यूँ तुम्हें जाने क्या हो गया,
एकपल को लगा मैं ख़ुदा हो गया।
तेरा जाना भी, जाना, गंवारा नहीं,
फिर भी जाना मुझीसे जुदा हो गया।।
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