उसमे बड़ा मजा था इसमें भी बस मज़ा ही।
Sumit patel
इतना बड़ा गुनाह न इतनी बड़ी ख़ता थी,
तेरी आशिकी ने जाना कितनी बड़ी सजा दी।
थी स्याह रात दुनिया तुम चाँद बनके आये,
इक दीप को सजाया फिर रौशनी बुझा दी।
कैसा अज़ब नज़ारा फूलों की वादियों का,
रूठा हुआ है माली बेज़ार है कली भी ।
पाऊँ भी कैसे तुमको जब खोने को कुछ नहीं,
दिल तो तुम्हारा था ही अब नाम जिंदगी की।
पलकों में सजा लेना,कभी नजरों से गिरा देना,
तूने दोस्ती भी जाना कुछ इस तरह अदा की।
वो साथ होना तेरा फिर मुझसे रूठ जाना,
उसमें बड़ा मज़ा था इसमें भी बस मज़ा ही।।
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