Kavita ki ek chhoti kalam
तुम होती तो सुन्दर होता
जंगल का हर एक नजारा,
पेड़ों पर बनी झोपडी
और भी रोचक होती,
कुछ और जरा निखरा होता
नदियों का हर एक किनारा,
उन वृझों को थोड़ा और परिभाषित कर पाता
जिनको सरकार ने संरक्षण दिया है,
उदाहरण में तुम्हें ,
यह बताने का प्रयास करता कि,
तुम भी मेरे प्रेम को मन के किसी सतह में
जरूर संरक्षण कर लेना,
और तुम्हारी बात करूं?
तो तुम तो मेरे मन की भूमि पर
गुलाब के पौधे की तरह उपजी हो,
जिसकी महक को मेरे मन की मिट्टी
अपनी आत्मा तक में संजोये है,
वहाँ के उपवन में खिले फूलों
के बारे में भी बताता, कि
देखो तुम्हारी बदन की खुश्बू के आगे
इनकी गन्ध मद्धिम सी हो गयी है,
और तुम्हारी हंसी को देखकर
शर्माकर समय से पहले ही मुरझाने लगे हैं।
गेरुआ और घाघरा नदी की गहराई
तुम्हारे आँखों की गहराई से बहुत कम है,
और हाँ! वो देखो मदमस्त घूम रहे दो हाथी
तुम्हारे प्रेम की विशालता के आगे कितने छोटे हैं,
अभी अभी इधर से भागा है हिरन का जोड़ा
जानते हो क्यों?
कहीं तुम्हारी चंचलता से वह लज्जित न हो जाए,
और जो ये मगर के बच्चे तुम्हे देखकर
पानी में वापस तैरने लगे है,
ये जानते हैं तुम्हारी नजरों के तीर
इनसे ज्यादा घायल कर सकते हैं।
तन के साथ न सही मन के सदा साथ थीं तुम
तुम्हारी स्मृतियां हर पल राह दिखाती रहीं,
और आज भी देखो न तुम दूर तक नहीं हो,
पर जाने क्यूं, तुम्हारी स्मृतियां मुझसे तुम्हें लिखाती रहीं।
जाने क्यूं "सुमित"मुझसे तुम्हें लिखाती रहीं।।
और हां सच में!
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