Friday, May 31, 2019

शायरी तुम्हारे नाम की


                                   Sumit patel

ऐ ख़ुदा कोई तो अंजाम बख़्स मेरी मोहब्बत का,
मुझसे उनकी नाराज़गी में अब जिया नही जाता।।१


अब जब सपने में आना तो क्लीयर करके जाना,
अभी और कब तक नाराज़ रहोगे मुझपर।।२


खुले रहने दे घाव मेरे इनको मरहम से न जिंदा कर,
मेरे हमदम मेरी नज़रों में मुझे अब और न शर्मिंदा कर।।३


चलो अब पुकार लो मोहब्बत भरे लहज़े से तुम,
एक इसी उम्मीद पर ख़ुद को ज़िंदा कर रखा है।।४


उफ़्फ़ ये गर्मी और भाव खाती लाइट कुछ ज्यादा ही कटती है,
मेरे वो इस समय यहीं हैं कम्बख़्त इतना भी नही समझती है।।५


किसीको क्या मालूम कि उसने क्या कहा मुझसे,
होंठों से ज्यादा "सुमित" उसकी आँखें बोलती हैं।।६


वो मुझे भूल गया है "सुमित" ये ऐतबार कर लेता मग़र,
उसके नाम पर ही हिचकियों के रुकने का मतलब क्या है।।७

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