"प्रेम" तेरी सेवा में मेरी भेंट स्वरूप ह्र्दय के अनमोल भाव कविता के रूप में समर्पित हैं। इसे स्वीकार करो कि मेरी कलम तुम्हारे प्रति आभार प्रकट करना चाहती है।
- सुमित पटेल
बिन बताये हमें दूर तुम यूँ गये,
छोड़ राधा को बृज में ज्यूँ मोहन गये।
याद आई तो होगी हमारी प्रिय,
बोलो क्या थी विवशता तुम्हारी प्रिय।।
मैंने जमीन पर बैठकर सर झुकाते हुए धरती से कहा,
माँ! लो मैं हारकर आ गया, मिट्टी में मिलने के लिए।
जमीं मुस्कराई, चुपके से बोली इन्तज़ार कर लल्ला ,
तेरी मोहब्बत भी तड़पती है तुझसे मिलने के लिए ।।
मोहब्बत के अलावा तुम कोई पैगाम मत देना,
जहां आग़ाज़ में हो छल उसे अंजाम मत देना।
नहीं वाजिब किसीके दिल को कोई चोट पहुंचाओ,
"सुमित"तुम प्यार करते हो उसे इल्जाम मत देना।।
मुझे विश्वास था तुम पर, मुझे विश्वास है तुम पर
मेरी हर आस थी तुमसे मेरा उल्लास है तुम पर ।
हुईं जब दूर तुम मुझसे "सुमित" आँखें बहुत रोईं,
मगर जो प्यार था तुमसे मेरा वो प्यार है तुम पर।।
कैसे बताएं साथी, तेरे बगैर
कितना टूट गए हैं हम।
आंखे जागती हैं शब भर ,
नींद के कर्ज में डूब गए हैं हम।
कैसा हवा का झोंका आया है,
अपने दामन से छूट गए हैं हम।
तू नहीं मुझसे खफा है जाना,
खुद ही खुदसे रुठ गए हैं हम।
- सुमित पटेल
No comments:
Post a Comment