Tuesday, May 8, 2018

प्रेम, बोले तो परमात्मा !

किसी ने कहा है कि "मोहब्बत की तारीफ में ज़्यादा मत बोलो,  उसके लिए यही काफी है कि वो मोहब्बत है" सत्य है। क्योंकि प्रेम से व्यापक शायद स्वयं परमात्मा भी नही है, प्रेम की अनुपस्थिति में तो परमात्मा की कल्पना तक नही की जा सकती। देखिए न, पक्षियों का प्रेम किलोल, लहरों का हिलोर, माताओं का प्रेम वात्सल्य, प्रेमियों का प्रणय, अपने से छोटों के प्रति प्रेम स्नेह का रूप ले लेता है। ऐसे ही पुचकार, दुलार, प्रणाम, नमस्ते,आशीर्वाद, हर्ष, उल्लास, रूठने, मनाने, आंसू,वेदना, आदि विभिन्न स्वरूपों द्वारा प्रेम सदैव हमारे पास होता है।

पराई वेदना हंसकर हृदय के तार सहते हैं,
नयन से नीर के निर्झर सदा रसधार बहते हैं।
बहुत हैरान कर दे मन चले कुछ जोर न अपना,
समझ लेना मेरे हमदम इसी को प्यार कहते हैं।

इसी के ढाई आखर में कबीरा भी समाया है,
गरल हो जाएगा अमृत ये मीरा ने बताया है।
समर्पण के अलावा मोल इसका है नहीं कोई,
न पूछो प्यार में किसने कहाँ किसको गंवाया है।

उतर कर खान में रस के कभी रसखान को पढ़ना,
बसी जो ख़्वाब में छवि हो उसे प्रतिमान में गढ़ना।
वफादारी, सजगता और सरलता, हौंसलें रखना,
प्रेम, दुर्गम सी चोटी है, पड़ेगा दूर तक चढ़ना ।
                                      सुमित पटेल

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