Sunday, February 3, 2019

देर क्यों प्रभु।

                                    Sumit

रचना काल- 7/11/2018


हे राम एक बार फिर तुम्हारा वनवास समाप्त हुआ
हर बार की तरह फिर तुम्हारी अगवानी में दीप जलाए गए।

पटाखों और पर्यावरण की बहस जारी रही
चीनी झालर बहिष्कार के बावजूद जगमगाते रहे।

बाग़ लोगो ने रंगोली भी क्या खूब सजाई
बन्दनवारों की तरह छतों पर झालर चमकते रहे

पटाखे, मस्ताब,फुलजरियों के साथ तेज आवाज के गोले भी गरजते रहे।

एक बार आपको चौदह वर्ष का वनवास क्या मिला
हर बरस बार बार वनवास समाप्त हो ही जाता है

इतना बड़ा घोर अन्याय क्यूं कर प्रभू
माना कि आप परमात्मा हो,रावण विजेता हो
पर इसका अर्थ ये तो नहीं कि आप न्याय न करो

अपना वनवास बार बार समाप्त करो प्रभू पर
निज जन के वनवास का भी तो कुछ स्मरण करो

वह छण भी आये जब हमारा भी अज्ञातवास पूरा हो।
घर में ही नहीं प्रभु मन भी पुनः सवेरा हो।

यदि ऐसा नहीं तो हे राम मुबारक आपको आपकी दीवाली है,
आप रहो प्रकाश पुन्ज बनकर अपनी हर रात अमावश सी काली है।

माफ़ करना प्रभु ह्र्दय विदीर्ण हुआ शिकायत कर बैठा,
अंजान बन्दा हूं कोई परमात्मा नहीं हिमाकत कर बैठा।

आप ही तो कहते हैं कि खेती सूख जाये तो बारिश से क्या फायदा,
प्यास से मृत व्यक्ति को अमृत का कलश देना बेकार है।

यदि करुणा निधन हो तो करुणा करने में देर क्यों प्रभु,
आपके होते हुए भी किसी की दुनियां में अंधेर क्यों प्रभु


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