Saturday, January 12, 2019

सोचता हूँ असल में मरने का तजुर्बा किया जाए।

                       SUMIT patel


अब जिंदगी कुछ इस तरह से जिया जाए।
घावों पर नमक की जगह मरहम दिया जाए।

कौन जाने ज़ख्मों को शायद भर ही डाले,
चलो वक़्त को कुछ वक़्त तो दिया जाए।

उसके बिछड़ने का गम है पर मलाल नहीं,
मुनासिब नहीं है इश्क़ पर मलाल किया जाए।

पंख पर उंगली उठाने से पहले जरूरी है,
परिंदे को उड़ने का मौका तो दिया जाए ।

तुम अगर खुश हो मुझसे दूर रहकर जीने में,
मेरे लिए जरूरी है तेरी मर्जी से जिया जाए।

सुनो! मेरे बाद मेरे सारे गीत तुम्हारे अपने होंगे,
समय आ गया है तुम्हारे नाम वसीयत किया जाए।

तुम्हारे इश्क़ में तो कई दफ़ा मर चुके हैं "सुमित",
सोचता हूं असल में मरने का तजुर्बा किया जाए।

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