Tuesday, January 15, 2019

ऐ कलम तू......लगती है

                        Sumit patel     


कलम आज तो तू बहोत मचलती है
शब्द शब्द में ख़ुशबू पहनकर निकलती है
उछलती है नाचती महकती है शरमाती है
मैं भी हैरान हूं तू क्या बताना चाहती है
कभी शाम सुहानी लिखती है
कभी लहरों की रवानी लिखती है
कभी लिखती है आँखों में पानी
कभी परियों की कहानी लिखती है
सूरज बरफ़ है,
चन्दा धूप देगा,
पानी में आग सकेंगें,
घर नहीं राहें बुहारना है,
फूल तोड़कर सड़कों पर बिखेरना है,
पांव नहीं सर के बल चलना है,
कुछ कहना नहीं बस मौन रहना है,
कितनी बड़ी गड़बड़ी में है,
शायद तू हड़बड़ी में है,
इतराना तो ठीक मग़र मग़रूर लगती है।
ऐ कलम तू किसीके नशे में चूर लगती है।

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