Patel Sumit
केवल तुम्हारी यादों में मैं रोया और गाया था।
वक़्त गणतंत्र का और मैं कितना घबराया था।
उधर जाकर नज़र भर आती थी जहाँ तुम बैठी थी पहले,
अबके तुम नहीं हो बड़ी मुश्क़िल से दिल को समझाया था।
कभी इसपर कभी उसपर हर गाने पर नचाया लोगों ने,
मैं नाचता गया बेहिचक तेरा गम मैंने लोगों से छिपाया था।
बिना तेरी तालियों के मेरा शायरी पढ़ना आसान नहीं था,
मग़र जैसे तैसे तेरी यादों में मैंने कुछ गीत भी गाया था।
मैंने महसूस किया मानो हर शायरी पर तुम मचलती हो,
तुम्हारा अहसास ही जाना जुबाँ पर गीत बनकर आया था।
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