Friday, November 23, 2018
Thursday, November 22, 2018
Sunday, November 18, 2018
मेरा मन तेरा है बावरिया।
मेरे सांवरिया मेरे सांवरिया,
मेरा मन तेरा है बावरिया ।
मेरे सांवरिया मेरे सांवरिया,
सांवरिया ओ मेरे सांवरिया।
तेरे प्रीत की रीत निराली है,
मेरे मन की गागर ख़ाली है,
तेरी मिले झलक तो छलक छलक,
मैं भरलूं अपनी गागरिया।
सांवरिया ओ मेरे सांवरिया,
मेरा मन तेरा है बावरिया।।
विरहन बन पुरवा आई है,
बदरी यादों की लाई है,
अब बरस जा तरस रहे नैना,
बन मिलन की प्यासी बादरिया।
सांवरिया ओ मेरे सांवरिया,
मेरा मन तेरा है बावरिया।।
मेरे नयन तेरे आराधक हैं,
तेरे प्रेम के ही हम साधक हैं,
कुछ प्रेम बहा मेरे मनमितरे,
कर पार ज़रा मन की नैय्या।
सांवरिया ओ मेरे सांवरिया,
मेरा मन तेरा है बावरिया।।
मुस्कान तेरी अलबेली है,
ख़ुशबू सख़ी सहेली है,
कविता बन महक उठो प्रियतम,
मैं नाचूँ बाजे झांझरिया।
सांवरिया ओ मेरे सांवरिया,
मेरा मन तेरा है बावरिया।।
मेरा मन तेरा है बावरिया ।
मेरे सांवरिया मेरे सांवरिया,
सांवरिया ओ मेरे सांवरिया।
मेरे मन की गागर ख़ाली है,
तेरी मिले झलक तो छलक छलक,
मैं भरलूं अपनी गागरिया।
सांवरिया ओ मेरे सांवरिया,
मेरा मन तेरा है बावरिया।।
बदरी यादों की लाई है,
अब बरस जा तरस रहे नैना,
बन मिलन की प्यासी बादरिया।
सांवरिया ओ मेरे सांवरिया,
तेरे प्रेम के ही हम साधक हैं,
कुछ प्रेम बहा मेरे मनमितरे,
कर पार ज़रा मन की नैय्या।
सांवरिया ओ मेरे सांवरिया,
मेरा मन तेरा है बावरिया।।
ख़ुशबू सख़ी सहेली है,
कविता बन महक उठो प्रियतम,
मैं नाचूँ बाजे झांझरिया।
सांवरिया ओ मेरे सांवरिया,
मेरा मन तेरा है बावरिया।।
यूं हीं न तेरे दीवाने हैं,
हम आशिक़ कुछ मस्ताने हैं,
पद इधर मेरे मग में रख जा,
लूं चूम जरा पद डागरिया ।
सांवरिया ओ मेरे सांवरिया,
मेरा मन तेरा है बावरिया।।
हम आशिक़ कुछ मस्ताने हैं,
पद इधर मेरे मग में रख जा,
लूं चूम जरा पद डागरिया ।
सांवरिया ओ मेरे सांवरिया,
मेरा मन तेरा है बावरिया।।
Saturday, November 17, 2018
तुमको तुमसे ही मैं मांगता रह गया।
Sumit patel
लाख उनका करम आ अचानक मिले,
जैसे बिछड़े हुए दो कथानक मिले ।
माना मिलकर भी हम उनसे मिल न सके,
खूबसूरत थे फिर भी वो पल जो मिले ।।
मन में गुलज़ार फूलों की बगिया खिली,
मानों संगम पे आकरके नदियां मिली ।
जिनकी आँखों में ही था बसेरा मेरा,
उनकी आँखों से मेरी ये अंखियां मिली।।
देखकर मैं तुम्हें देखता रह गया ,
तुम बदल क्यूं गये सोचता रह गया।
तुमने देखा मुझे तुम सिमट से गये,
कुछ न मैंने कहा कांपता रह गया।।
तुमको तुमसे ही मैं मांगता रह गया,
जाने क्या क्या वज़ह बेवज़ह कह गया।
तुम आकर बगल से निकल भी गयीं,
कुछ भी कह न सका अनकहा रह गया।।
हाथ जोड़ा जो तुमने चिढ़ा कर गयी,
कर्ज मुझपर नया तुम चढ़ा कर गयी।
छूने देती क़दम ऋण उतरता मेरा ,
मुझको असहाय फिरसे बनाकर गयी।।
देखकर यूँ तुम्हें जाने क्या हो गया,
एकपल को लगा मैं ख़ुदा हो गया।
तेरा जाना भी, जाना, गंवारा नहीं,
फिर भी जाना मुझीसे जुदा हो गया।।
Friday, November 16, 2018
उसमे बड़ा मजा था इसमें भी बस मज़ा ही।
Sumit patel
इतना बड़ा गुनाह न इतनी बड़ी ख़ता थी,
तेरी आशिकी ने जाना कितनी बड़ी सजा दी।
थी स्याह रात दुनिया तुम चाँद बनके आये,
इक दीप को सजाया फिर रौशनी बुझा दी।
कैसा अज़ब नज़ारा फूलों की वादियों का,
रूठा हुआ है माली बेज़ार है कली भी ।
पाऊँ भी कैसे तुमको जब खोने को कुछ नहीं,
दिल तो तुम्हारा था ही अब नाम जिंदगी की।
पलकों में सजा लेना,कभी नजरों से गिरा देना,
तूने दोस्ती भी जाना कुछ इस तरह अदा की।
वो साथ होना तेरा फिर मुझसे रूठ जाना,
उसमें बड़ा मज़ा था इसमें भी बस मज़ा ही।।
Thursday, November 15, 2018
तुम होती तो।
Kavita ki ek chhoti kalam
तुम होती तो सुन्दर होता
जंगल का हर एक नजारा,
पेड़ों पर बनी झोपडी
और भी रोचक होती,
कुछ और जरा निखरा होता
नदियों का हर एक किनारा,
उन वृझों को थोड़ा और परिभाषित कर पाता
जिनको सरकार ने संरक्षण दिया है,
उदाहरण में तुम्हें ,
यह बताने का प्रयास करता कि,
तुम भी मेरे प्रेम को मन के किसी सतह में
जरूर संरक्षण कर लेना,
और तुम्हारी बात करूं?
तो तुम तो मेरे मन की भूमि पर
गुलाब के पौधे की तरह उपजी हो,
जिसकी महक को मेरे मन की मिट्टी
अपनी आत्मा तक में संजोये है,
वहाँ के उपवन में खिले फूलों
के बारे में भी बताता, कि
देखो तुम्हारी बदन की खुश्बू के आगे
इनकी गन्ध मद्धिम सी हो गयी है,
और तुम्हारी हंसी को देखकर
शर्माकर समय से पहले ही मुरझाने लगे हैं।
गेरुआ और घाघरा नदी की गहराई
तुम्हारे आँखों की गहराई से बहुत कम है,
और हाँ! वो देखो मदमस्त घूम रहे दो हाथी
तुम्हारे प्रेम की विशालता के आगे कितने छोटे हैं,
अभी अभी इधर से भागा है हिरन का जोड़ा
जानते हो क्यों?
कहीं तुम्हारी चंचलता से वह लज्जित न हो जाए,
और जो ये मगर के बच्चे तुम्हे देखकर
पानी में वापस तैरने लगे है,
ये जानते हैं तुम्हारी नजरों के तीर
इनसे ज्यादा घायल कर सकते हैं।
तन के साथ न सही मन के सदा साथ थीं तुम
तुम्हारी स्मृतियां हर पल राह दिखाती रहीं,
और आज भी देखो न तुम दूर तक नहीं हो,
पर जाने क्यूं, तुम्हारी स्मृतियां मुझसे तुम्हें लिखाती रहीं।
जाने क्यूं "सुमित"मुझसे तुम्हें लिखाती रहीं।।
और हां सच में!
Wednesday, November 14, 2018
Tuesday, November 13, 2018
वो मेरी समस्याओं का मुझे हल दे गया ।
Kavita ki ek chhoti kalam
समझौता कर लेते हैं,
अक्सर ज़िन्दगी में ऐसे पल आ ही जाते हैं,
विवशता की बेड़ियां परिस्थितियों को जकड़ लेती है,
समस्याएं जटिल होकर हौंसले को रौंदना चाहती हैं,
जिजीविषा तमस के आवरण को लपेटकर सो जाती है,
वेदना के उत्तुंग शिखर से अश्रु धार निर्झर बन बह निकलती है,
और फिर अचानक!
धैर्य रखना,राह तकना,मंजिल मिलेगी मन से आत्मा विरहणी कह गुजरती है।
पल तो पल में बीत जाएगा हर्ष का हो या विषाद का,
यत्किंचित वृतांत रह जाएगा भविष्य में अनुवाद का,
छूटना, जकड़ने का और टूटना, बेड़ियों का आगामी अर्थ होता है
और परिस्थितियों का रोना रोना कर्मवाद में सदैव व्यर्थ होता है,
समस्याएं जितना विवश करेंगी, हौंसला उतना ही अदम्य होगा,
संघर्षों से जूझकर आया परिणाम अतुलनीय और सुरम्य होगा,
ऐसे में उसका अकस्मात सम्मुख आ जाना मेरे हौंसले को संबल दे गया,
मौन रहकर ही सही "सुमित" वो मेरी समस्याओं का मुझे हल दे गया।
जिसकी तलाश मैं ख़्वाबों मे करता था वो अपनी झलक मुझे कल दे गया,
मेरा विश्वाश जीवन्त कर गया, मानो वो डूबते को तिनके का बल दे गया।।
Monday, November 12, 2018
Saturday, November 10, 2018
तेरी सूरत में मुझको ख़ुदा चाहिए।
Sumit patel
तुम कहो तो कहूं मुझको क्या चाहिए,
तेरी सूरत में मुझको ख़ुदा चाहिए।
तुम ये मानो न मानो है हक़ीक़त यही,
तेरी यादों का जंगल घना चाहिए ।
तुमको चाहूं तुम्हारी इबादत करूँ,
तुझसे मेरे ख़ुदा ये रज़ा चाहिए ।
है वीरान सी मन की बगिया मेरी,
एक तू ही मुझे बागबाँ चाहिए ।
शामो ओ सहर तुम ज़ेहन में रहो,
दिल में मेरे सदा ये सदा चाहिए ।
दिल है मेरा तुम्हारा ही अपना मकाँ,
तेरा आना वज़ह बेवज़ह चाहिए ।
दूर होकर भी कहां तुम दूर होते हो,
तुम मुझमें हो मुझे और क्या चाहिए।
देखो कभी मुझसे नजर न फ़ेर लेना,
सुमित को तुम्ही तुम रहनुमा चाहिए।।
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