- SUMIT PATEL
एक घटना घटी, सौभाग्य से नहीं
अपितु दुर्भाग्य से।
और समाचार भी मार्मिकता और करुणा
से भरे मिलने लगे,
की फलाने अब नहीं रहे,
कल तीन बजे ही गुजरे हैं मिट्टी जल्दी ही होगी
वही , कोई दस से ग्यारह बजे।
परिजन, पुरजन पहुँचने लगे
अभी देर है, किसका इंतज़ार है!
पूछने लगे।
गायत्री वाले पंडित जी बुलाये गए ,
अंतिम संस्कार के लिए।
क्योंकि ये भी मामूली थोड़ी थे,
परिवार को बढ़ाने के लिए, क्या
कुछ नहीं किया इन्होंने!
इनके अंतिम संस्कार में लापरवाही
हो, स्वीकारना कठिन है,
बहुत हो चुका पुराना तरीका ,
नए रूप से भी कुछ करना
जरूरी है।
मन्त्रों के उच्चारण के साथ, महकती
धूप की आहुति हो।
शरीर को शांति न दे सके तो क्या हुआ
जीते जी पानी देते तो शरीर पी लेता
पांव दबाते तो शरीर सुखी होता
पौष्टिक भोजन देते तो शरीर का
अहंकार बढ़ता,
पर देह तो नश्वर है उसके साथ कुछ भी
करते साथ थोड़ी जाएगा।
ये तो मिट्टी का बना है, मिट्टी में
ही मिल जायेगा ।
इसलिए आत्मा का सत्कार करो
जो उनके साथ जायेगी।
दूध से नहलाओ गंगा जल से पवित्र करो
क्योंकि बहुत अपवित्र हो गए थे
तुम्हारे साथ रहकर।
तुम्हारी इतनी गन्दी मानसिकता उनका
शरीर भी सहन न कर पाया।
आत्मा क्या ख़ाक सहन कर पाएगी ।
इसलिए कि जिनसे प्यार भरा एक
शब्द भी न बोले कभी,
आत्मा की शांति के लिए अनेक
गायत्री मंत्र पढवाओगे,
जीते जी तुमने पानी तक नहीं दिया,
अब तुम ब्रम्हभोज करवाओगे।
जब हड्डियां दुखी तब तुम दवा नही लाये,
न ही हाथों से कभी सहला पाए।
एक एक हड्डी इकठ्ठा करके, बड़ी तन्मयता
से, हरिद्वार पहुँचाओगे।
मूड़ मुड़वाओगे, भंडारे लगवाओगे,
क्या क्या नहीं करोगे,
पर अर्थ कुछ भी न पाओगे।
बुद्धिहीन कहेंगें, पुरखों के लिए
तुमने हर रस्म अदा की,
अल्पबुद्धि वाले तुम्हारे कर्मों को
समाज का डर बताएंगें ।
पर असल में दोंनों गलत हैं
न तुमने रसमें निभाई और
न ही तुम्हे समाज की चिंता है,
तुम्हें तो बस अपनी चिंता है, अपने
किए अनैतिक कर्मों के प्रति,
तुम डरते हो कि इनके साथ तुमने
कोई सुलभ व्यवहार न किया।
तुमने कभी उनके प्रति अपने कर्तव्यों
को नही समझा।
और तुम्हे लगता है, कहीं उनकी आत्मा
यहीं न हो,
कहीं तुम्हारे कर्मों का तुमसे प्रतिशोध
न लेने आए।
तुम अपने इन्ही पंडितों के ज्ञान से
भयभीत हो,
की आत्मा आएगी, पुकारेगी, डराएगी
इसलिए दान करो,
आत्मा की मुक्ति के लिए।
फिर तुम्हारे स्वार्थ, को उनके शरीर
से मुक्ति चाहिए थी,
सो मिल गयी।
अब तुम्हारे भय को उनकी आत्मा से मुक्ति
चाहिए, इसलिए
तुम भयभीत होकर ये सभी कर्म कांड
करने को उतावले हो जाते हो,
विश्वास कर लेते हो, कि मैंने तो उनकी
सभी इच्छाएं पूरी कर दी।
अपने कर्तव्यों को पूरा करने का झूठा
नाटक करते हो।
कि अब मुझसे कोई सवाल नहीं पूछा
जायेगा,
हर कोई मुझे मातृ- पितृ भक्त बतायेगा ।
पर क्या उस समय ये सत्य किसीसे
छिपा पाओगे,
जब तुम्हारा मन तुमसे पूछेगा, कहो
क्या बताओगे ।
तब पश्चताप भी न होगा जब समय के
साथ खुद को भी यहीं पाओगे।
और हां ये बहुत पुरानी कहावत है"सुमित"
पेड़ जो लगाओगे फल भी वही पाओगे।।
इसलिए आओ कर्मकांडो से पहले भी अपने
कुछ अधूरे कर्तव्य निभाएं,
बुजुर्गों को प्यार दें, उनका सहारा बनें, आने
वालों के लिए आशीर्वाद नहीं,पेड़ लगाएं।।